MUHARRAM UL HARAM KA TAFSILI JAIZA - QURAAN W HADISH KI ROSHNI ME..

*हिस्सा-1*

                      *मुहर्रमुल हराम*
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*तमाम सुन्नी मुसलमानों को इस्लामी नया साल बहुत बहुत मुबारक हो,याद रहे कि ये मुबारकबाद नए साल की है ना कि माज़ अल्लाह इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत की जैसे कि आज कल कुछ जाहिल मुल्ला अवाम को बरगलाने के लिए इस तरह की खुराफातें फैला रहे हैं कि देखो सुन्नी अब शहादते हुसैन की भी मुबारक बाद देने लगे लिहाज़ा ऐसे मुल्लाओं और ऐसी जाहिलाना बातों से दूर रहे,अब आईये आपको बताते हैं कि इस महीने में शहादते इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के अलावा भी और बहुत सारे काम हुए हैं,पहले तो ये जानिये कि मुहर्रम को मुहर्रमुल हराम क्यों कहते हैं इसलिये कि ज़मानये जाहिलियत में भी इस महीने में जंग व क़िताल हराम था,इस महीने की 10 तारीख को क्या क्या काम हुये फेहरिस्त मुलाहजा करें*

*1.  हज़रत सय्यदना आदम अलैहिस्सलाम की तौबा क़ुबूल हुई*

*2.  हज़रत सय्यदना यूनुस अलैहिस्सलाम की तौबा क़ुबूल हुई और मछली के पेट से बाहर आये*

*3.  हज़रत सय्यदना नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती जूदी पहाड़ पर ठहरी,उस दिन शुकराने पर रोज़ा रखा और तमाम को रोज़ा रखवाया*

*4.  हज़रत सय्यदना इब्राहीम अलैहिस्सलाम पैदा हुए*

*5.  हज़रत सय्यदना ईसा अलैहिस्सलाम पैदा हुए*

*6.  हज़रत सय्यदना यूसुफ अलैहिस्सलाम क़ैद से बाहर आये*

*7.  हज़रत सय्यदना मूसा अलैहिस्सलाम पैदा हुए*

*8.  हज़रत सय्यदना इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर आग गुलज़ार हुई* 

*9.  हज़रत सय्यदना अय्यूब अलैहिस्सलाम ने शिफा पाई*

*10. हज़रत सय्यदना याक़ूब अलैहिस्सलाम की आंख की रौशनी वापस आई*

*11. हज़रत सय्यदना यूसुफ अलैहिस्सलाम कुंए से बाहर निकले*

*12. हज़रत सय्यदना सुलेमान अलैहिस्सलाम को बादशाहत मिली* 

*13. हज़रत सय्यदना मूसा अलैहिस्सलाम जादुगरों पर ग़ालिब आये*

*14. हज़रत सय्यदना इदरीस अलैहिस्सलाम जन्नत में पहुंचे*

*15. फिरऔन का लश्कर गर्क़ हुआ*

*16. क़यामत इसी दिन आयेगी*

*17. पहली बार बारिश हुई*

*18. आसमान कुर्सी कलम पहाड़ समन्दर पैदा हुए*

*19. इसी दिन असहाबे कहफ करवटें बदलते हैं*

*20. और सय्यदना हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत हुई*

*📕 जामेय सगीर,जिल्द 5,सफह 34/226*
*📕 अजायबुल मखलूक़ात,सफह 44*
*📕 गुनियतुत तालेबीन,जिल्द 2,सफह 53* 
*📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 145*

*एक शहीद की मौत क्या फज़ीलत रखती है उसके लिये ये पढ़िये कि हुज़ूर को खैबर के रोज़ जो ज़हर वाला गोश्त खिलाया गया था आपके विसाल के वक़्त उस ज़हर का असर लौटाया गया ताकि आपको शहीद होने का मर्तबा भी हासिल हो हालांकि आपको इसकी ज़र्रा बराबर भी ज़रूरत नहीं थी मगर ऐसी शानदार फज़ीलत से अल्लाह आपको महरूम नहीं रखना चाहता था सो वो मर्तबा भी आपको हासिल हुआ,हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को ग़ारे सौर में जब सांप ने काटा तो हुज़ूर के लोआबे दहन लगाते ही वो ज़हर का असर जाता रहा मगर आपके विसाल पर उस ज़हर का असर भी लौटाया गया ताकि आपको भी शहादत का दर्जा हासिल हो*

*_मगर जाहिल अवाम ने ऐसे अज़ीम तरीन मरतबे को खेल तमाशा बना डाला याद रखिये कि अगर इस्लाम में मातम ही रवा होता तो क्या हुज़ूर के विसाल से भी कोई बड़ा ग़म मुसलमानों पर टूटा था सहाबा इकराम अपना आपा तक खो बैठे थे,हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु शिद्दते ग़म से निढ़ाल हो गए,हज़रत उमर फारूके आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु तलवार लेकर घूम रहे थे कि अगर किसी ने कहा कि हुज़ूर का विसाल हो गया तो गर्दन मार दूंगा,हज़रत उसमान ग़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बोली बंद हो गई,हज़रत मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को इस क़दर ग़म लाहिक़ हुआ कि जहां बैठे थे वहीं बैठे रह गए और जुम्बिश तक ना की,हज़रत अब्दुल्लाह बिन उनैस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का तो हार्ट फेल ही हो गया,सहाबये किराम का बुरा हाल था मगर हदीसों की किताब उठाकर देखिये कि क्या ये खेल तमाशे वहां भी हुये थे,नहीं नहीं और हरगिज़ नहीं,मगर आज कल के निहाद हुसैनियों का हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को याद करने का तरीका देखिये ढोल ताशा ये बजायें लाठी ये लड़ायें करतब ये दिखायें झाड़ फानूस से बनाये हुए रौज़ये इमाम हुसैन की बेहुरमती ये करें ताज़िया के नाम पर औरतों और मर्दों का नाजायज़ मेला ये इकठ्ठा करें और ये सब खुराफातें करके बन गए सच्चे शैदाइये हुसैन और अगर कोई सुन्नी रोज़ा रखे सदक़ा करे इत्मिनान से लंगर इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का एहतेमाम करे नमाज़ों को क़ज़ा ना करते हुए अपने वक़्तों पर अदा करे मगर वो ताज़ियादारी ना करे तो वो हरगिज़ हरगिज़ इमाम हुसैन का चाहने वाला नहीं है,है ना अजीब मन्तिक_*

*जारी रहेगा...*
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                   *हिस्सा-2*

                      *मुहर्रमुल हराम*
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*_मुरव्विजह ताज़ियादारी नाजायज़ों हराम है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है_*

*और छोड़ दे उनको जिन्होंने अपना दीन हंसी खेल बना लिया और उन्हें दुनिया की ज़िन्दगी ने फरेब दिया*

*📕 पारा 7,सूरह इनआम,आयत 70*

*जिन्होंने अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया और दुनिया की ज़िन्दगी ने उन्हें फरेब दिया तो आज उन्हें हम छोड़ देंगे जैसा कि उन्होंने इस दिन के मिलने का ख्याल छोड़ा था और हमारी आयतों से इनकार करते थे*

*📕 पारा 8,सूरह एराफ,आयत 51*

*_क्या आज ताज़ियादारी के नाम पर यही खेल तमाशा नहीं किया जाता,क्या ढ़ोल ताशे नहीं बजाये जाते,क्या लाठियां नहीं नचाई जाती,क्या करतब नहीं दिखाए जाते,क्या मेले ठेले झूले नहीं लगते,क्या अलम के नाम पर नाजायज़ों खुराफात नहीं होती,क्या औरतों और मर्दों का नाजायज़ मेला नहीं लगता,उसमें हराम कारियां नहीं होती क्या इन सबको तमाशा नहीं कहेंगे,और उस पर सबसे बढ़कर ये कि लकड़ियों खपच्चियों से 2 क़ब्रें बनाकर उन पर लाल-हरा कपड़ा चढ़ाकर माज़ अल्लाह एक को हज़रत इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र और दूसरी को हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र समझकर उन पर फूल डालना,नाड़ा बांधना,मन्नत मांगना क्या ये सब खुली हुई जिहालत नहीं है,ऐ इमाम हुसैन के नाम निहाद शैदाईयों क्या इन्ही सब खुराफात के लिए इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने करबला में भूखे प्यासे रहकर शहादत पेश फरमाई थी,क्या यही माज़ अल्लाह मसलके इमाम हुसैन था क्या उन्होंने यही कहा था कि भले ही नमाज़ें फौत हो जाएं मगर ऐ जाहिलों तुम अपने कांधों पर से मस्नूई जनाज़ा ना उतारना,तू अपने आपको इमाम हुसैन का शैदाई तो ज़रूर कहता है मगर तू अपने दावे में बिलकुल झूठा है अगर तू सच्चा होता तो वो करता जो मेरे इमाम ने फरमाया बल्कि जो करके दिखाया क्या तुझे याद नहीं कि 3 दिन के भूखे प्यासे इमाम के जिस्म पर 72 तीर और तलवार के ज़ख्म मौजूद थे मगर जब नमाज़ का वक़्त आया तो आपने अपने दुश्मनों से नमाज़ पढ़ने की इजाज़त चाही और नमाज़ अदा की,ताज़िया बनाने उठाने वालों अगर तुम सच्चे शैदाईये हुसैन होते तो याद करते कि बैयत करना सिर्फ एक सुन्नत ही तो है अगर आप चाहते तो युंही यज़ीद की बैयत कर लेते बाद को तोड़ देते मगर आपने उस मक्कार झूठे फरेबी फासिको फाजिर ज़ालिम शराबी ज़ानी बदकार बदकिरदार यज़ीद की बैयत ना की और पूरा घर का घर लुटा दिया मगर दीने मुहम्मद पर आंच ना आने दी,क्या इमाम हुसैन की तरफ से भी ढ़ोल ताशे नगाड़े बजाए जाते थे क्या उनकी तरफ से भी नमाज़ों को फौत किया जाता था क्या उनकी तरफ से भी नाजायज़ों खुराफात हुआ करती थी माज़ अल्लाह,नहीं और हरगिज़ नहीं,वो सच्चे उनका दीन सच्चा तू झूठा,और अगर तू सच्चा है तो मान जा वो बात जो उन्होंने मना फरमाई और जो उनके नाना जान हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने मना फरमाई,आप फरमाते हैं कि_*

*जो मय्यत के ग़म में गाल पीटे गिरेहबान फाड़े और ज़माना जाहिलियत की सी चीखों पुकार करे वो हममे से नहीं*

*📕 बुखारी शरीफ,जिल्द 1,सफह 173*

*_दूसरी जगह हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि_*

*उम्मे अतिया रज़ियल्लाहु तआला अन्हा कहती हैं कि हुज़ूर ने हमें मय्यत पर नोहा करने से मना किया*

*📕 बुखारी शरीफ,जिल्द 1,सफह 175*

*लोगों में 2 बातें ज़मानये जाहिलियत यानि कुफ्र के दौर की निशानियां है एक तो किसी के नस्ब पर लअन तअन करना और दूसरा मय्यत पर मातम करना*

*📕 मुस्लिम शरीफ,जिल्द 1,सफह 58*

*हुज़ूर ने नोहा करने वाले और सुनने वाले दोनों पर लानत फरमाई*

*📕 अबू दाऊद,जिल्द 2,सफह 90*

*_और ताज़ियादारी मातम करने का ही एक तरीक़ा है जिसे हिंदुस्तान में शिया फिर्क़े के एक शख्स तैमूर लंग जो कि 1336 ईसवी में पैदा हुआ और 68 साल की उम्र में यानि 1405 में मरा ने रायज की,ये हर साल अशरये मुहर्रम में ईरान जाया करता था मगर एक साल बीमारी के सबब ना जा सका तो उसके मानने वालों ने यहीं ताज़िये की शक्ल में एक शबीह बना दी जिससे ये बहुत खुश हुआ और धीरे धीरे यही मरदूद रस्म पूरे हिन्दुस्तान में फैल गयी जिससे आज शायद ही कोई गली मुहल्ला बचा हो,हालांकि मुरव्विजह ताज़ियादारी नाजायज़ों हराम है जिस पर आलाहज़रत के ज़माने से कई साल पहले के एक जय्यद आलिम हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि_*

*अशरये मुहर्रम में जो ताज़ियादारी होती है कि गुम्बद नुमा ताज़िये बनाये जाते हैं और तरह तरह की तस्वीरें बनायीं जाती है यह सब नाजायज़ है,और इसमें किसी तरह की मदद करना गुनाह है*

*📕 फतावा अज़ीज़िया,जिल्द 1,सफह 75*

*और उससे भी कई सौ साल पहले सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह तआला अलैहि ने अपने ज़माने में तमाम ताज़ियों मेंहदियों और झूलों को बनाने और निकालने पर सख्ती से पाबन्दी लगाई थी* 

*📕 औरंगज़ेब आलमगीर,सफह 274*

*जारी रहेगा....*
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                   *हिस्सा-3*

                      *मुहर्रमुल हराम*
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*_हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह तआला अलैहि और हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ये दोनो मेरे आलाहज़रत से कैई 100 साल पहले के है क्या ये दोनो हज़रात भी बरैलवी थे क्या अब इनका भी रद्द किया जायेगा,नाम निहाद इमाम हुसैन के शैदाईयों मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त ने तो सिर्फ पहले के बुज़ुर्गों का क़ौल नकल ही फरमाया है कि ताज़ियादारी नाजायज़ों हराम है तो तास्सुब परस्त लोगों ने दीन के एहकाम को ठुकराते हुए आलाहज़रत पर ही निशाना लगाया और माज़ अल्लाह उस मुक़द्दस बन्दे पर ही लअन तअन शुरू कर दिया,मगर वली से ये दुश्मनी इन कमज़र्फों को कहां ले जायेगी शायद इस बात का इन्हें अंदाज़ा भी नहीं है जैसा कि हदीसे क़ुदसी है रब फरमाता है कि_*

*जिसने मेरे किसी वली से दुश्मनी की मैं उससे जंग का एलान करता हूं*

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 963*

*_बहरहाल कोई माने या ना माने मगर ताज़ियादारी हराम है हराम है हराम है,अहले सुन्नत व जमात के मुताअद्दद उल्माये किराम ने इसे हराम फरमाया है मसलन हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी ने फतावा अज़ीज़िया में,सरकारे आलाहज़रत ने फतावा रज़विया में,हुज़ूर मुफतिये आज़म हिन्द ने फतावा मुस्तफविया में,हुज़ूर सदरुश्शरिया ने बहारे शरीयत में,मौलाना अजमल संभली ने फतावा अजमलिया में,मौलाना हशमत अली खान ने शम्ये हिदायत में,मुफ्ती जलाल उद्दीन अहमद अमजदी ने फतावा फैज़ुर्रसूल में,इसके अलावा ताज़ियादारी के नाजायज़ों हराम होने पर 1388 हिजरी में मंज़रे इस्लाम बरैली शरीफ से एक फतवा पोस्टर की शक्ल में शाया हुआ जिस पर हिंदुस्तान व पाकिस्तान के 75 उल्माये किराम ने अपनी तसदीक़ात की जिन्हें उन सबके नाम देखना हो वो किताब खुतबाते मुहर्रम सफह 523 पर देख सकता है,एक और अहम बात ताज़ियादारी चुंकि हराम है मगर अब इसको जायज़ करने वाले हराम समझकर तो उठा नहीं सकते लिहाज़ा उसको जायज़ करने के लिए मनघडंत और झूठी रिवायतें बुज़ुर्गों या वलियों के नाम से उनकी किताबों में छाप चुके हैं,और उन्हीं किताबों को अवाम में दिखा दिखाकर मशहूर करते हैं कि देखो वारिस पाक ने ताज़ियादारी की माज़ अल्लाह मखदूम अशरफ ने ताज़ियादारी की माज़ अल्लाह और कोई तो आलाहज़रत का ही नाम ले बैठता है माज़ अल्लाह,ये सारी रिवायतें बे अस्ल और गढ़ी हुई हैं जिनका इन बुज़ुर्गों से कोई लेना देना नहीं है जैसा कि इसी तरह के एक सवाल के जवाब में आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त खुद इरशाद फरमाते हैं कि_*

*ताज़ियादारों को ना तो कोई दलीले शरई मिलती है ना ही कोई मोअतमद क़ौल मजबूराना हिक़ायत बनाते फिरते हैं,इसी तरह की फर्जी रिवायतें कोई शाह अब्दुल अज़ीज़ साहब से नक़ल करता है तो कोई मौलाना अब्दुल मजीद साहब से तो कोई फज़ले रसूल साहब से तो कोई मेरे जद्दे अमजद से ही और ये सब बातें बातिल और मसनूअ हैं*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 10,सफह 37*

*_हां अगर जायज़ है तो सिर्फ और सिर्फ और सिर्फ इतना कि जिस तरह काबये मुअज़्ज़मा या मदीना तय्यबह या बैतुल मुक़द्दस की हू बहू नक़्ल बनाई जाती है कि असल ही की तरह इनकी ताज़ीम है सो इस तरह बनाने में कोई हर्ज़ नहीं मगर ना तो उस पर फूल चढ़ाया जाए ना मन्नतें मांगी जाए ना कांधों पर उठाया जाए सिर्फ देखकर ही शुहदाये करबला की याद मनाई जाए,मगर ऐसा हो ही नहीं सकता कि अवाम अपनी आदत से बाज़ आ जाये क्योंकि उसको तो हर काम में entertainment चाहिए,लिहाज़ा बेहतर है कि इसकी जगह उन बातों पर अमल करें कि जिसका हुक्म उल्मा ने फरमाया है मसलन सबील लगाना रोज़ा रखना ईसाले सवाब करना एहतेराम के साथ लंगर तकसीम करना यतीमों और मिस्कीनों पर कसरत से खर्च करना कि अस्ल नेकी यही है और शुहदाये करबला की याद शरीयत के दायरे में रहकर इस तरह भी मनाई जा सकती है,मौला हम सबको बिदअतों और गुमराहियों से महफूज़ फरमाये और मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम रखे-आमीन आमीन आमीन या रब्बुल आलमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीन सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम_*

*जारी रहेगा....*
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                *हिस्सा-4*

                      *मुहर्रमुल हराम*
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*_आज कल  एक msg बहुत आ रहे हैं  ताज़ियादारी के जायज़ होने के तअल्लुक़ से है जिसमें बहुत सारी खुराफात और बहुत सारे वलियों का नाम लेकर ये बताया गया है कि उन सबने ताज़ियादारी की है माज़ अल्लाह,इसका जवाब तो मैं ताज़ियादारी की पोस्ट में दे चुका हूं वहीं से पढ़ लीजिये पर उस msg में एक बहुत ही हैरत अंगेज़ बात ये लिखी हुई है कि_*

*मुस्लमान होना  ज़रूरी  नहीं है साहब आशिक़  ए हुसैन होना जरूरी है!!!!!*

*_माज़ अल्लाह सुम्मा माज़ अल्लाह,ये शख्स ताज़ियादारी को जायज़ करने के चक्कर में कहां पहुंच गया है समझाता हूं,साहिबे बहारे शरीयत हुज़ूर सदरुश्शरिया हज़रत अल्लामा मौलाना अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह तआला अलैहि फरमाते हैं कि_*

*ईमान और कुफ्र में कोई वास्ता नहीं मतलब ये कि या तो आदमी मुसलमान होगा या काफिर बीच की कोई दूसरी राह नहीं*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 54*

*_इसका साफ सुथरा मतलब ये है कि जो मुसलमान है तो वो मुसलमान है और जो मुसलमान नहीं वो काफिर है और काफिर के लिए हमेशा की जहन्नम,तो अब जिसने ये कहा कि मुसलमान होना ज़रूरी नहीं तो ज़ाहिर है कि उसने कुफ्र को पसंद किया और जिसने कुफ्र को पसंद किया वो ऐसे भी काफिर हुआ जैसा कि आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त फरमाते हैं कि_* 

*जिसने किसी बातिल फिरके को पसंद किया वो काफिर है* 

*📕 अहकामे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 163*

*_आपको मिसाल देकर समझाता हूं कि दुनिया में बहुत सारे ऐसे गैर मुस्लिम स्कॉलर हुए हैं जिन्होंने इस्लाम की शान में और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शान में बहुत सी तारीफें की मगर वो अपने मज़हब से हटे नहीं बल्कि उसी पर कायम रहे तो क्या आप उन्हें मुसलमान कहेंगे नहीं और हरगिज़ नहीं,उसी तरह आपने अक्सर देखा सुना होगा कि मज़ारों पर मस्जिदों के बाहर मुस्लिम आमिलों के पास बहुत सारे गैर मुस्लिम नज़र आते हैं उनमें से बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं जो इस्लाम के खिलाफ नहीं बोलते बल्कि तारीफ ही करते हैं तो क्या मज़ारो पर आने वाले किसी भी आदमी को आप मुसलमान मानेंगे नहीं और हरगिज़ नहीं,ये सब छोड़िये आपको 1400 साल पहले ले चलता हूं हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को अरब के काफिर भी अमीन यानि सच्चा कहा करते थे अब ज़रा ये बताइए कि एक आदमी किसी को सच्चा किस बुनियाद पर कहेगा ज़ाहिर सी बात है उसकी अच्छाईओं को देखकर और उससे मुहब्बत की बुनियाद पर कहेगा वरना आप किसी को गाली देते हों किसी को पसंद ना करते हों किसी की हंसी उड़ाते हों तो क्या आप उसको अच्छा कहेंगे,नहीं बिलकुल नहीं बल्कि आप अच्छा उसी को कहेंगे जिससे आप मुहब्बत रखते होंगे,मगर वहां देखिये कि काफिरो का आपको अमीन कहने के बावजूद आपने उन सबको कल्मे की दावत पेश की कि मुसलमान हो जाओ तो निजात है वरना हमेशा की आग में रहना होगा फिर जिसने कल्मा पढ़ लिया मुसलमान हो गया और जिसने नहीं वो काफिर हुआ,अरे इसको भी छोड़िये अबू तालिब को देखिये जो आपके चाचा और मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के बाप थे हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से इतनी मुहब्बत करने के बावजूद भी कल्मा नहीं पढ़ा तो अल्लाह ने उन्हें मुसलमान नहीं माना बल्कि दुआए मगफिरत करने तक के लिए हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मना फरमा दिया,क़ुर्आन में फरमाता है कि_*

*बेशक ऐ नबी ये नहीं कि तुम जिसे अपनी तरफ से चाहो हां अल्लाह हिदायत फरमाता है जिसे चाहे* 

*📕 पारा 20,सूरह अलक़सस,आयत 56*

*_ये आयत अबू तालिब के हक़ में नाज़िल हुई और इसका शाने नुज़ूल ये है कि जब अबू तालिब की मौत का वक़्त आया तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उनसे कहा कि आप मेरे कान में कल्मा पढ़ लीजिये ताकि मैं क़यामत के दिन आपकी गवाही दे सकूं कि आप मुसलमान हैं इस पर भी उन्होंने इनकार किया तो आप ग़मगीन हो गए तो ये आयत उतरी जिसमे मौला फरमाता है कि ऐ महबूब ग़म ना करो कि तुमने अपना मंसबे हक़ यानि तब्लीग अदा कर दी अब किसको ईमान की दौलत देना है और किसको नहीं ये हमारा काम है_*

*📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 40* 
*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 150*
*📕 मअलेमुत तंज़ील,जिल्द 3,सफह 387*
*📕 तफसीरे जलालैन,सफह 332*
*📕 तफसीरे नस्फी,जिल्द 3,सफह 240*
*📕 तफसीरे कबीर,जिल्द 25,सफह 2*
*📕 तफसीरुल किशाफ,जिल्द 3,सफह 443*
*📕 मिरकात,जिल्द 9,सफह 640*

*नबी और मोमिनो को लायक़ नहीं कि मुशरिकों की बख्शिश चाहें अगर चे वो उनके रिश्तेदार हों जबकि उन्हें खुल चुका कि वो दोज़खी हैं*

*📕 पारा 11,सूरह तौबा,आयत 113* 

*_ये आयत भी अबू तालिब के हक़ में नाज़िल हुई जबकि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने आपके लिए दुआये मगफिरत करना चाहा तो मौला ने आपको मना फरमा दिया_*

*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 181/548*
*📕 तफसीरे नस्फी,जिल्द 2,सफह 128*
*📕 तफसीरे बैदावी,जिल्द 4,सफह 648*
*📕 तफसीरे जलालैन,सफह 167*
*📕 उम्दतुल क़ारी,जिल्द 8,सफह 262*
*📕 निसाई,जिल्द 1,सफह 286*
*📕 अलइतकान,जिल्द 1,सफह 73*
*📕 ज़रक़ानी,जिल्द 1,सफह 293*

*_और भी आयत पेश की जा सकती है मगर समझाने के लिए इतना काफी है सोचिये कि जिस चचा ने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को 8 साल की उम्र से पाला पोसा बड़ा किया उनकी शादी कराई उनके हर काम में साथ रहे मगर जब उन्होंने कल्मा नहीं पढ़ा तो मौला उनको काफिर कहने से परहेज़ नहीं कर रहा है अब बताईये कि जिनसे मुहब्बत करना मदारे ईमान है उनसे मुहब्बत की जाए मगर कल्मा ना पढ़े तो काफिर और आज का ये जाहिल कहता है कि मुसलमान होना ज़रूरी नहीं बल्कि सिर्फ इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मुहब्बत रखना ही काफी है तो ये कहकर वो मरदूद खुद तो काफिर होकर जहन्नमी हुआ और जो उसकी बात की जो तस्दीक़ करेगा वो भी काफिर होगा,किसी से भी मुहब्बत उसी वक़्त काम आयेगी जबकि ईमान वाला हो यानि मुसलमान हो वरना क्या राफज़ी यानि शिया कम अहले बैत से मुहब्बत का दावा करते हैं मगर उनके बारे में क्या हुक्म है आंख खोल कर पढ़िए_*

*राफज़ियों को काफिर कहना ज़रूरी है ये फिर्का इस्लाम से खारिज है मुर्तदीन के हुक्म में है* 

*📕 फतावा आलमगीरी,जिल्द 3,बाब 9,सफह 264*

*_मौला से दुआ है कि हमें ऐसे गुमराहों और उनकी गुमराहियों से महफूज़ रखे-आमीन_*
*जारी रहेगा....*
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*हिस्सा-5*

                      *मुहर्रमुल हराम*
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                         *शहीद*

*शहीद की 3 किस्में हैं*

*_1. शहीदे हक़ीक़ी - वो है जो अल्लाह की राह में क़त्ल किया जाए_*

*_2. शहीदे फ़िक़्ही - वो आक़िल बालिग़ मुसलमान है जिस पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ ना हो और वो किसी आलये जारिहा यानि बन्दूक या तलवार से ज़ुल्मन क़त्ल किया जाए,और ज़ख़्मी होने के बाद दुनिया से कोई फायदा ना हासिल किया हो या ज़िन्दों के अहकाम में से कोई हुक्म उस पर साबित ना हो मसलन लाठी से मारा गया या किसी और को मारा जा रहा था और ये मर गया या ज़ख़्मी होने के बाद खाया पिया या इलाज कराया या नमाज़ का पूरा वक़्त होश में गुज़रा या किसी बात की वसीयत की तो वो शहीदे फ़िक़्ही नहीं,मगर शहीदे फ़िक़्ही ना होने का ये मतलब हरगिज़ नहीं कि उसे शहादत का सवाब भी ना मिलेगा बल्कि मतलब ये है कि अगर शहीदे फ़िक़्ही होता तो बिना ग़ुस्ल दिये उसे उसके खून और कपड़ों के साथ नमाज़े जनाज़ा पढकर दफ्न कर देते मगर अब उसे ग़ुस्ल भी कराया जाएगा और कफ़न भी दिया जाएगा_*

*_3. शहीदे हुकमी - वो है जो ज़ुल्मन क़त्ल तो नहीं किया गया मगर क़यामत के दिन उसे शहीदों के साथ उठाया जाएगा,जैसे_*

*! जो डूब कर मरे*
*! जल कर मरे*
*! किसी चीज़ के नीचे दब कर मरे*
*! निमोनिया की बीमारी में*
*! पेट की बीमारी से*
*! ताऊन से*
*! वो औरत जो बच्चा जनने की हालत में मरे*
*! जुमे के दिन या रात में*
*! तालिबे इल्म*
*! जो 100 बार रोज़ाना दुरूद पढ़े और शहादत की तमन्ना रखे*
*! जो पाक दामन किसी के इश्क़ में मरे*
*! सफर में मरे बुखार या मिर्गी या सिल की बीमारी में*
*! जो किसी मुसलमान की जान माल इज़्ज़त या हक़ बचाने में मरे*
*! जिसे दरिंदे ने फाड़ खाया*
*! जिसे बादशाह ने क़ैद किया और वो मर गया*
*! मूज़ी जानवर के काटने से मरा*
*! जो मुअज़्ज़िन सवाब के लिए अज़ान देता हो*
*! जो चाश्त की नमाज़ पढ़े*
*! जो फसादे उम्मत के मौक़े पर सुन्नत पर क़ायम हो*
*! जो बीमारी की हालत में 40 मर्तबा आयते करीमा पढ़े*
*! कुफ्फार से मक़ाबले में*
*! जो हर रात सूरह यासीन शरीफ पढ़े*
*! जो बावुज़ू सोया और मर गया*
*! जो अल्लाह से शहीद होने की दिल से दुआ करे*

*📕 खुतबाते मुहर्रम,सफह 20*
*📕 क्या आप जानते हैं,सफह 582*

*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि_*

*जो खुदा की राह में मारे जाएं उन्हें मुर्दा न कहो बल्कि वो ज़िंदा हैं हां तुम्हें खबर नहीं*

*📕 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 154*

*और जो अल्लाह की राह में मारे गए हरगिज़ उन्हें मुर्दा न ख्याल करना बल्कि वो अपने रब के पास ज़िन्दा हैं रोज़ी पाते हैं*

*📕 पारा 4,सूरह आले इमरान,आयत 169*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि शहीद को क़त्ल की बस इतनी ही तक़लीफ होती है जितनी चींटी के काटने से होती है वरना मौत कि तक़लीफ के बारे मे रिवायत है कि किसी को अगर 1000 तलवार के ज़ख्म दिये जायें तो इसकी तक़लीफ मौत की तक़लीफ से कहीं ज़्यादा हलकी होगी और अल्लाह के यहां उसे 6 इनामात दिए जाते हैं*

*📕 शराहुस्सुदूर,सफ़ह 31*

*_1. उसके खून का पहला क़तरा ज़मीन पर गिरने से पहले उसे बख्श दिया जाता है और उसकी रूह को फ़ौरन जन्नत में ठिकाना मिलता है_*

*_2. क़ब्र के अज़ाब से महफूज़ हो जाता है_*

*_3. उसे जहन्नम से रिहाई मिल जाती है_*

*_4. उसके सर पर इज़्ज़त का ताज रखा जाएगा_*

*_5. उसके निकाह में बड़ी बड़ी आंखों वाली 72 हूरें दी जायेंगी_*

*_6. उसके अज़ीज़ों में से 70 के हक़ में उसकी शफाअत क़ुबूल की जायेगी_*

*📕 मिश्क़ात शरीफ,सफह 333*

*_अब तक इसलाम की बक़ा के लिए ना जाने कितने ही मुसलमान अपनी जान जाने आफरीन के सुपुर्द कर चुके हैं,मगर जो शहादत कर्बला के मैदान में भूखे प्यासे रहकर अपने मय अहलो अयाल के सय्यदुश शुहदा इमाम आली मक़ाम नवासये रसूल सय्यदना इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने पेश फरमाई वो बेमिस्ल और बे मिसाल है,एक शहीद की ज़िन्दगी को समझना हो तो ये ईमान अफ़रोज़ हिक़ायत पढ़ लीजिए_*

*हिक़ायत*

 *_तीन भाई मुल्के शाम में रहते थे जो बड़े जरी और बहादुर थे,हमेशा अल्लाह की राह में जिहाद किया करते थे,रूमियों ने एक मर्तबा उनको गिरफ्तार कर लिया और अपने इसाई बादशाह के सामने पेश किया उसने कहा कि तुम लोग मज़हबे इसलाम छोड़ दो और ईसाई बन जाओ उन तीनो ने बयक ज़बान कहा कि यह हरगिज़ नहीं हो सकता,बादशाह ने कहा मैं तुम लोगों को सल्तनत दूंगा और अपनी लड़कियों से शादी भी कर दूंगा तुम लोग ईसाई हो जाओ,मगर मुजाहिदीन इस पर भी ईसाई बनने के लिए तैयार न हुए,बादशाह ने कहा अगर हमारी बात नहीं मानोगे तो क़त्ल कर दिए जाओगे,मुजाहिदीन ने कहा_*

      *गुलामाने मुहम्मद जान देने से नहीं डरते*
*यह सर कट जाए या रह जाए कुछ परवाह नहीं करते*

*_बादशाह ने हुक्म दिया की तीन देगों में ज़ैतून का तेल खौलाया जाए जब तेल खौल गया तो मुजाहिदीन को उन देगों के पास लाया गया और कहा गया कि अगर ईसाई नहीं बनोगे तो इसी खौलते हुए तेल में डाल दिए जाओगे,अब भी मौक़ा है खूब सोच लो उन बहादुरों ने कहा कि हमारी आखिरी सांस का जवाब यही होगा की हम जान तो दे सकते हैं मगर मुस्तफ़ा का दिया हुआ ईमान नहीं दे सकते,उन्होंने या मुहम्मदाह पुकारा फिर ईसाईयों ने बड़े भाई को तेल के खौलते हुए देग में डाल दिया, उस के बाद फिर बाकी दोनों भाइयों को समझाने की कोशिश की गयी मगर आंखों से अपने भाई का यह अंजाम देखने के बावजूद उनके अंदर कुछ फ़र्क़ पैदा नहीं हुआ,वह अब ख़ुशी के साथ अल्लाह की राह में शहीद होने के लिए तैयार रहे आखिर मंझले भाई को भी खौलते हुए तेल में डाल दिया गया,छोटे भाई की उभरती जवानी देख कर वज़ीर ने बादशाह से कहा कि इसे हमारे सुपुर्द कर दीजिए,वज़ीर ने उन्हें एक मकान में बंद कर दिया और अपनी हसीन लड़की को उन्हें बहकाने के लिए मुक़र्रर किया,रात के वक़्त लड़की दाखिल हुई वह मर्दे मुजाहिद रात भर नफ़्ल नमाज़े पढ़ता रहा और हसीना की तरफ़ नज़र उठा कर भी न देखा और कैसे देखता,जिन निगाहों में हुस्ने मुस्तफा बस चुका हो वह निगाहें भला किसी और की तरफ कैसे उठ सकती हैं_*

*ग़ैर पर आंख न डाले कभी शैदा तेरा*
*सब से बेगाना है ऐ प्यारे सनाशा तेरा*

*_लड़की के लिए यह मंज़र बड़ा ही अजीब था कि जिसकी एक झलक देखने के लिए दुनिया बेताब है यह जवान उसको एक नज़र भी देखने के लिए तैयार नहीं,सुबह के वक़्त वह नाकामी के साथ वापस आई और अपने बाप को बताया कि आज उसकी इबादत की कोई रात थी,मगर इसी तरह चालीस रातें गुज़र गयी और वह मर्दे मुजाहिद उसकी तरफ़ मुतवज्जह नहीं हुआ,आखिर में खुद वह लड़की मुतास्सिर हो गयी और कहा ऐ पाकबाज़ नौजवान तू किस का शैदाई और फिदायी है की मेरी तरफ़ निगाह उठा कर भी नहीं देखता,फ़रमाया_*

*मैं मुस्तफा के जामे मुहब्बत का मस्त हूं*
*ये वो नशा नहीं जिसे तुर्शी उतार दे*

*_लड़की सिद्क दिल से " ला इलाहा इल्लललाह मुहम्मदुर रसूलुल्ललाह " पढ़ कर मुसलमान हो गयी और अस्तबल से दो घोड़े लायी,रात ही में दोनों वहां से फरार हो गए और अभी ज़्यादा दूर नहीं पहुचे थे कि पीछे से घोड़ो के आने की आहट मालूम हुई और जल्द ही वह क़रीब आ गए, देखा तो नौजवान के वही दोनों भाई हैं जो खौलते हुए तेल में डाले गए थे साथ में फरिश्तो का एक गिरोह भी था,नौजवान मुजाहिद ने हाल पूछा तो उन लोगो ने बताया कि बस वही तेल का एक गोता था जो तुम ने देखा उस के बाद हम जन्नतुल फिरदौस में पहुंच गए,फिर दोनों भाईयों ने फरिश्तो की मौजूदगी में उस लड़की का निकाह अपने भाई से कर दिया और वापस चले गए_*

*ज़िंदा हो जाते हैं जो मरते हैं हक़ के नाम पर*
*अल्लाह अल्लाह मौत को किस ने मसीहा कर दिया*

*_इस वाकिया से जहां यह साबित हुआ कि अल्लाह की राह में क़ुर्बान होने वाले शहीद मरते नहीं है बल्कि ज़िंदा हो जाते हैं,साथ ही यह भी मालूम हुआ कि मदद के लिए या रसूल अल्लाह पुकारना जायज़ है कि मुजाहिदीन ने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को पुकारा था अगर दूर से पुकारना शिर्क होता तो उन्हें जन्नतुल फिरदौस में जगह ना मिलती और ना छोटे भाई की शादी में फरिश्तों की शिरकत होती,अब इसी एक रिवायत से सय्यदुश शुहदा इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की ज़िन्दगी का भी अंदाज़ा लगा लीजिए,जिनकी हयाते जावेदाना पर बस यही शेअर काफी है_*

*तू ज़िंदा है वल्लाह तू ज़िंदा है वल्लाह*
*मेरी चश्मे आलम से छिप जाने वाले*

*📕 खुतबाते मुहर्रम,सफह 30*

*जारी रहेगा....*

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हिस्सा-6*

                      *मुहर्रमुल हराम*
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         *शहादते इमाम हुसैन और राफजी*

*राफजी - गद्दार,गिरोह को छोड़ने वाला*
*शिया - मुहिब्ब,मददगार,चाहने वाला*

*_राफजी जिनको उर्फे आम में शिया भी कहा जाता है हालांकि ये क़ौम हरगिज़ शिया कहलाने के लायक़ नहीं है,दोनों लफ्ज़ के मानों में ज़मीन आसमान का फर्क है और ये मुमकिन ही नहीं कि एक ही क़ौम के दो अलक़ाब हों और दोनों के माने एक दूसरे से इतने ज़्यादा जुदा हों,जिस तरह की ये क़ौम है और जैसा इनका अमल रहा है उस पर राफजी यानि गद्दार ही ठीक बैठता है,हदीसे पाक में आता है मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि_*

*आखिर ज़माने में एक गिरोह पाया जाएगा जिनका एक खास लक़ब होगा उनको राफजी कहा जाएगा वो हमारी जमात में होने का दावा करेगा और दर हक़ीक़त वो हमारी जमात से नहीं होगा उनकी निशानी ये होगी कि वो हज़रत अबु बक्र रज़ियल्लाहु तआला अन्हु व हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को बुरा कहेंगे*

*📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 6,सफह 81*

*_और नवासये रसूल हज़रत ज़ैद शहीद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि_*

*ऐ कूफियों खारजियों ने तो उन्हें गालियां दी जो मरतबे में अबु बक्र रज़ियल्लाहु तआला अन्हु व उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से कम थे यानि उसमान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु व अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को क्योंकि अबु बक्र व उमर की शान में कुछ कहने की गुंजाइश ना पाई,लेकिन ऐ कूफियों तुमने तो उनसे भी ऊपर छलांग लगाई और अबु बक्र व उमर को गालियां दी तो अब कौन रह गया खुदा की कसम अब कोई ना रह गया जिसको तुमने गालियां ना दी*

*📕 गायतुत तहक़ीक़ फी इमामते अली व सिद्दीक़,सफह 15*

*_ये काफिरो मुर्तद फिरका जिसके बहुत सारे कुफ्रिया अक़ायद हैं उन सबकी तफसील अलग से पोस्ट में आयेगी,उनके इन्ही कुफ्र के सबब आज से तक़रीबन कई 100 साल पहले 500 उल्माये किराम की मेहनत से सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह तआला अलैहि के ज़ेरे नज़र तरतीब पाई किताब फतावा आलमगीरी में है कि_*

*राफज़ियों को काफिर कहना ज़रूरी है ये फिर्का इस्लाम से खारिज है मुर्तदीन के हुक्म में है*

*📕 फतावा आलमगीरी,जिल्द 3,बाब 9,सफह 264*

*_ये निहायत ही ग़द्दार क़ौम है अब इनकी वो ग़द्दारी मुलाहज़ा करें जो इन्होने कर्बला के मैदान में दिखाई,पढ़िये_*

*कूफियों ने हज़रत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के ज़माने में ही इमाम आली मक़ाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को कूफा बुलाने के लिए कई खत लिख चुके थे मगर हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के इन्तेक़ाल के बाद इन खतों की तादाद बढ़ती गयी,जब आपने उनकी ये अक़ीदत मुलाहज़ा की तो आपने कूफा के हालात का जायज़ा लेने के लिए पहले अपने चचाज़ाद भाई हज़रते मुस्लिम बिन अक़ील रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को कूफा भेजा,जब हज़रते मुस्लिम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कूफा पहुंचे तो सबने जोशो मुहब्बत के साथ उनका इस्तेक़बाल किया और उनके हाथों पर बैयत की,हज़रते मुस्लिम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने जब देखा कि यहां हालात तो सब ठीक ठाक है तो आपने हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को खत लिखा कि आप भी यहां तशरीफ ले आयें,इस वक़्त आपके साथ 40000 कूफी थे मगर ज्यों ही कूफा के गवर्नर उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने एलाने आम करवाया कि अगर किसी ने भी हज़रते मुस्लिम की मदद की तो वो यज़ीद का मुखालिफ क़रार पायेगा और उसे भी सख्त सज़ा मिलेगी तो हालत ये हो गयी कि शाम होते होते मग़रिब की ऐन नमाज़ में 500 आदमी शामिल थे मगर जब हज़रत मुस्लिम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने सलाम फेरा तो एक भी कूफी वहां मौजूद नहीं था,फिर तो उन गद्दारों की बुज़दिली और ना मर्दी यहां तक पहुंच गई कि सबके सब अपनी मौत के डर से अपने ही घरों में ताले डालकर घर में ही छिप गये और हज़रत इमाम मुसलिम को किसी ने भी पनाह नहीं दी,उधर जब हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को इमाम मुस्लिम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का खत मिला तो आप मय अहलो अयाल के कूफा का सफर करने को तैयार हो गए,मगर अकाबिर सहाबये किराम जैसे हज़रत इब्ने अब्बास,हज़रत इब्ने उमर,हज़रत जाबिर,हज़रत अबू सईद और हज़रत अबु वाक़िद लैसी वग़ैरह को कूफियों के अहद का ऐतबार ना था और आपने हज़रते इमाम को रोकने की बहुत कोशिश की मगर नाकाम हुए और लश्कर कूफा को रवाना हो गया,इधर हज़रते मुस्लिम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को और उनके 2 बेटों हज़रते मुहम्मद व हज़रते इब्राहीम को यज़ीदियों ने शहीद कर दिया,जिसकी खबर हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को रास्ते में ही हो गई मगर चुंकि आप कर्बला पहुंच गए थे सो वापसी ना की और खेमा नसब किया*

*📕 खुतबाते मुहर्रम,सफह 396-408*

*_यही कूफी आज जो राफजी और शिया कहलाते हैं इनके मातम नोहा और हुसैन हुसैन करने पर बहुत से मुसलमान धोखा खा जाते हैं कि ये तो शैदाईये हुसैन हैं मगर हक़ीक़त इसके उलट है,भले ही इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को शहीद करने वाली तलवार इनकी ना रही हो मगर इन गद्दारों ने इमाम का साथ छोड़कर अपने आपको भी उस क़यामते सुग़रह में शामिल किया है और ये भी उतने ही बड़े मुजरिम हैं जितना कि यज़ीद और उसकी फौज बल्कि उससे ज़्यादा कि ना तो ये हराम खोर खत लिखकर इमाम को बुलाते और ना वो इन गद्दारो पर भरोसा करके आते,और रही बात मातम करने की तो ये मातम करना उनकी मर्ज़ी नही बल्कि सज़ा है जैसा कि रिवायत में है कि_*

*जब इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का सर मुबारक नेज़े पर चढाकर कूफे मे घुमाया जा रहा था तो यही कूफी अपने आपको इस क़त्ले अज़ीम से जुदा रखने की गर्ज़ से रोना पीटना कर रहे थे तो इस पर शहज़ादिये फातिमा ज़ोहरा हज़रते ज़ैनब रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने उन कूफियों से फरमाया कि "तुम लोग क्यों रो रहे हो तुमही लोगों ने तो हमें खत लिख लिख कर यहां बुलवाया था और आखिर मे हमारा साथ छोड़ दिया और आज इस क़त्ल से अपनी बराअत ज़ाहिर कर रहे हो ये आले रसूल की बद्दुआ है कि क़यामत तक तुम युंहि रोते पिटते रहोगे*

*📕 बारह तक़रीरें,सफह 79*

*जारी रहेगा...*

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30/09/17, 2:13 PM - Pathan MoinRaza Khan: *हिस्सा-7*

                      *मुहर्रमुल हराम*
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                      *सुन्नी और शिया*

*_जैसा कि आपने सुना ही होगा कि मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि मेरी उम्मत में 73 फिरके होंगे उसमें से एक ही जन्नती होगा और 72 हमेशा जहन्नम में रहेंगे उन्ही जहन्नमी फिरकों में राफजी यानि शिया भी एक फिरका है,ये अपने आपको शैदाइये अहले बैत कहता है और उनके इसी या अली या हुसैन कहने पर हमारे बहुत से सुन्नी मुसलमान धोखा खा जाते हैं और उन्हें काफिर कहने से परहेज़ करते हैं मगर ये क़ौम अहले बैते अत्हार की मुहब्बत की आड़ लेकर ना जाने कितने ही कुफ्रिया अक़ायद रखती है,वैसे तो हुक्मे कुफ्र एक ही ज़रूरियाते दीन के इन्कार पर लग जाता है मगर इनके यहां तो कुफ्र की भरमार है,इनकी चंद कुफ्री इबारतें पेश करता हूं मुलाहज़ा फरमायें_*
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*_शिया अक़ायद - मुहम्मद सल्लललाहो अलैहि वसल्लम ने जिस खुदा की ज़ियारत की वो कुल 30 साल का था,माज़ अल्लाह_* 

*📕 उसूले काफी,जिल्द 1,सफह 49*

*_सुन्नी अक़ायद - बेशक खुदाए तआला जिस्म जिस्मानियत से पाक है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 3*
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*_शिया अक़ायद - अल्लाह तआला कभी कभी झूठ भी बोलता है,माज़ अल्लाह_*

*📕 उसूले काफी,जिल्द 1,सफह 328*

*_सुन्नी अक़ायद - और अल्लाह से ज़्यादा किसी की बात सच्ची नहीं_*

*📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 122*
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*_शिया अक़ायद - अल्लाह तआला गलती भी करता है,माज़ अल्लाह_*

*📕 उसूले काफी,जिल्द 1,सफह 328*

*_सुन्नी अक़ायद - बेशक अल्लाह तआला हर ऐब से पाक है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 4*
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*_शिया अक़ायद - अल्लाह तआला ने हज़रत जिब्रील को पैग़ामे रिसालत देकर अली के पास भेजा था लेकिन वो गलती करके मुहम्मद सल्लललाहो अलैहि वसल्लम के पास चले गए,माज़ अल्लाह_* 

*📕 अनवारुल नोमानिया,सफह 237*
*📕 तज़किरातुल अइम्मा,सफह 78*

*_सुन्नी अक़ायद - और वो (फरिश्ते) कभी भी कुसूर (गलती) नहीं करते_*

*📕 पारा 7,सूरह इनआम,आयत 61*
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*_शिया अक़ायद - हज़रत अली खुदा हैं,माज़ अल्लाह_* 

*📕 तज़किरातुल अइम्मा,सफह 77* 

*_सुन्नी अक़ायद - अल्लाह एक है_*

*📕 पारा 30,सूरह अहद,आयत 1*
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*_शिया अक़ायद - तमाम सहाबा सिवाये तीन चार को छोड़कर सब मुर्तद हैं,माज़ अल्लाह_* 

*📕 फरोग़े काफी,जिल्द 3,सफह 115*

*_सुन्नी अक़ायद - और उन सबसे (सहाबा) अल्लाह जन्नत का वादा फरमा चुका_* 

*📕 पारा 27 सूरह हदीद,आयत 10*
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*_शिया अक़ायद - मौजूदा क़ुरान नाक़िस है और क़ाबिले हुज्जत नहीं,माज़ अल्लाह_*

*📕 उसूले काफी,जिल्द 1,सफह 26-263*

*_सुन्नी अक़ायद - वो बुलंद मर्तबा किताब (क़ुरान) जिसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं_*

*📕 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 1*
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*_शिया अक़ायद - मौजूदा क़ुरान तहरीफ शुदा है,माज़ अल्लाह_*

*📕 हयातुल क़ुलूब,जिल्द 3,सफह 10*

*_सुन्नी अक़ायद - बेशक हमने उतारा है ये क़ुरान और बेशक हम खुद इसके निगहबान हैं_*

*📕 पारा 14,सूरह हजर,आयत 8*
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*_शिया अक़ायद - क़ुरान को हुज़ूर के विसाल के बाद जमा करना उसूलन गलत था_* 

*📕 हज़ार तुम्हारी दस हमारी,सफह 560*

*_सुन्नी अक़ायद - हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी ज़िन्दगी में ही क़ुरान को तरतीब दे दिया था लेकिन किताबी शक्ल में जमा करने की सआदत हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ को हासिल है_*

*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 114*
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*_शिया अक़ायद - मर्तबये इमामत पैगम्बरी से अफज़ल व आला है,माज़ अल्लाह_* 

*📕 हयातुल क़ुलूब,जिल्द 3,सफह 2*

*_सुन्नी अक़ायद - जो किसी ग़ैरे नबी को नबी से अफज़ल बताये काफिर है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 15*
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*_शिया अक़ायद - हज़रत आयशा का शरीयत से कुछ ताल्लुक़ नहीं और वो वाजिबुल क़त्ल हैं,माज़ अल्लाह_*

*📕 शरियत और शियाइयत,सफह 45*
*📕 बागवाये बनी उमय्या और माविया,सफह 474*

*_सुन्नी अक़ायद - हज़रते आयशा सिद्दीका की शानो अज़मत में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुराने करीम की सूरह नूर में 17 या 18 आयतें नाज़िल फरमाई और उनसे 2210 हदीस मरवी है_*

*📕 मदारेजुन नुबूवत,जिल्द 2,सफह 808*
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*_शिया अक़ायद - मौला अली का इमामत को तर्क कर देने से खुल्फाये सलासा मुर्तद हो गए,माज़ अल्लाह_* 

*📕 उसूले काफी,जिल्द 1,सफह 420*

*_सुन्नी अक़ायद - हुज़ूर ने अशरये मुबश्शिरा यानि 10 सहाबा इकराम का नाम लेकर जन्नती होने की गवाही दी जिनमें खुल्फाये सलासा भी शामिल हैं_* 

*📕 इबने माजा,जिल्द 1,सफह 61*
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*_शिया अक़ायद - हज़रत उमर बड़े बेहया थे,माज़ अल्लाह_* 

*📕 नूरुल ईमान,सफह 75*

*_सुन्नी अक़ायद - हुज़ूर फरमाते हैं कि मेरे बाद अगर कोई नबी होता तो उमर होते_*

*📕 तिर्मिज़ी,हदीस 3686* 
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*_शिया अक़ायद - हज़रत उसमान गारत गर था और उनकी खिलाफत में फहहाशी का सिलसिला शुरू हुआ,माज़ अल्लाह_* 

*📕 कशफुल इसरार,सफह 107*

*_सुन्नी अक़ायद - हज़रते उसमान ग़नी शर्मिले तबियत के मालिक हैं_* 

*📕 शाने सहाबा,सफह 114*
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*_शिया अक़ायद - जिस ने एक बार मूता किया उसका मर्तबा हज़रते हुसैन के बराबर और जिसने दो बार मूता किया उसका मर्तबा हज़रते हसन के बराबर और जिसने तीन बार मूता किया उसका मर्तबा हज़रते अली के बराबर और जिसने चार बार मूता किया उसका मर्तबा नबी के बराबर हो जाता है_*

*📕 बुरहाने मूता व सवाबे मूता,सफह 52* 

*सुन्नी अक़ायद - मूता हराम है*

*📕 तोहफये अस्नये अशरिया,सफह 67*

*मूता एग्रीमेंट मैरिज को कहते हैं मतलब ये कि अगर निकाह से पहले कोई मुद्दत तय की गयी मसलन 1 दिन के लिए या 1 हफ्ते के लिए या 1 महीने के लिए या 1 साल के लिए गर्ज़ की कोई भी मुद्दत तय हुई कि इतने दिन के लिए हम शादी करते हैं तो ये निकाह हराम मिस्ल ज़िना है*
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*_जो कुछ मैंने यहां ज़िक्र किया वो तो बस चंद बातें हैं वरना इन काफिरों की किताबों में तो सैकड़ों ही कुफरी इबारतें भरी पड़ी है,अगर ऐसा अक़ीदा रखने वाले सिर्फ ज़बानी अहले बैत अतहार का नाम लें तो क्या उन्हें मुसलमान समझ लिया जायेगा नहीं और हरगिज़ नहीं,अब हदीसे पाक में इस जहन्नमी फिरके का तज़किरा भी पढ़ लीजिए मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि_*

*आखिर ज़माने में एक क़ौम पाई जायेगी जिसका एक खास लक़ब होगा इन्हें राफजी कहा जायेगा ये हमारी जमात में होने का दावा करेगा मगर ये हम में से नहीं होगा इनकी पहचान ये होगी कि ये हज़रत अबु बकर व हज़रत उमर को बुरा कहेंगे* 

*📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 6,सफह 81*

*राफजियों को काफिर कहना ज़रूरी है ये फिरका इस्लाम से खारिज है मुर्तदीन के हुक्म में है*

*📕 फतावा आलमगीरी,जिल्द 3,सफह 264*

*जारी रहेगा...*
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: *हिस्सा-8*

                      *मुहर्रमुल हराम*

                   *फज़ाइले आशूरह का रोज़ा*
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*आशूरह यानि दसवीं मुहर्रम का रोज़ा पिछले एक साल के गुनाहों का कफ्फारह है और तमाम अंबिया ये रोज़ा रखा करते थे बल्कि वहशी और ज़हरीले जानवर तक रोज़ा रखा करते हैं*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 136*
*📕 जामेय सग़ीर,जिल्द 4,सफह 215*
*📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 145*

*रमज़ान के बाद सबसे अफज़ल रोज़ा मुहर्रम यानि आशूरह का और फर्ज़ नमाज़ों के बाद सबसे अफज़ल नमाज़ तहज्जुद की है*

*📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 823*

*सियह सित्तह की हदीसे पाक है कि जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मदीना शरीफ तशरीफ लायें तो आपने आशूरह के दिन यहूदियों को रोज़ा रखते हुए देखा तो उनसे पूछा कि तुम लोग ये रोज़ा क्यों रखते हो तो उन्होंने कहा कि इस दिन अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम को निजात दी और फिरऔन को लश्कर समेत दरिया में डुबो दिया तो बतौर शुकराने में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने इस दिन रोज़ा रखा तो हम भी उनके मानने वाले हैं तो हम भी रोज़ा रखते हैं,तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि मूसा अलैहिस्सलाम की मुआफिक़त करने में हम तुमसे कहीं ज़्यादा हक़दार और उनके ज़्यादा करीब हैं,तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने खुद भी इस दिन रोज़ा रखा और सहाबा को भी हुक्म दिया तब सहाबा ने अर्ज़ की कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इस दिन की ताज़ीम में तो यहूद रोज़ा रखते हैं तो आप फरमाते हैं कि ठीक है अगर हम अगले साल रहे तो इन शा अल्लाह 9वीं मुहर्रम का भी रोज़ा रखेंगे ताकि उनसे मुशाबेहत ना हो मगर इसी साल आपका विसाल हुआ*

*📕 अबु दाऊद,जिल्द 2,सफह 256*

*_लिहाज़ा 9 और 10 दोनों दिन रोज़ा रखें ,एक और बात जिन लोगों का रमज़ान का कोई भी रोज़ा कभी का भी छूटा हुआ हो तो वो नियत रमज़ान के क़ज़ा की ही करें इस तरह उनका रमज़ान का रोज़ा भी अदा हो जायेगा और मौला ने चाहा तो मुहर्रम के रोज़े का भी सवाब पायेंगे_*


*जारी रहेगा....*
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*हिस्सा-9*

                      *मुहर्रमुल हराम*

                   *फज़ाइले आशूरह*
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*जो आशूरह के दिन अपने घर वालों पर ज़्यादा खर्च करेगा उसको अल्लाह तआला साल भर तक कुशादगी अता करेगा*

*📕 मिश्कात,सफह 170*
*📕 ग़ुनियतुत तालिबीन,जिल्द 2,सफह 54*
*📕 फैज़ुल क़दीर,जिल्द 6,सफह 236*

*जो शख्स आशूरह के दिन यतीम के सर पर हाथ फेरेगा तो मौला उसे हर बाल के बदले 1 नेकी और जन्नत में 1 दर्जा बुलन्दी अता फरमायेगा*

*📕 मिश्कात,सफह 423*
*📕 ग़ुनियतुत तालिबीन,जिल्द 2,सफह 53*

*जो आशूरह के दिन सुर्मा लगायेगा तो उसकी आंखे ना दुखेगी*

*📕 12 माह के फज़ायल,सफह 266*

 *जो आशूरह के दिन ग़ुस्ल करेगा तो साल भर तक किसी मर्ज़ में मुब्तेला ना होगा*

*📕 ग़ुनियतुत तालिबीन,जिल्द 2,सफह 53*

*जो आशूरह के दिन किसी बीमार की इयादत करेगा तो तमाम बनी आदम की इयादत का सवाब मिलेगा*

*जिसने आशूरह के दिन किसी को पानी पिलाया तो उसने उतनी देर अल्लाह की नाफरमानी नहीं की*

*📕 ग़ुनियतुत तालिबीन,जिल्द 2,सफह 54*

*जो आशूरह को 1 रुपया खर्च करेगा तो अल्लाह उसे 1000 रूपया अता करेगा*

*📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 147*

*_एक शख्स ने आशूरह के दिन 7 दरहम खर्च किये और साल भर तक इंतज़ार करता रहा मगर कुछ ना मिला तो अगले साल इसका मुनकिर हो गया,रात को ख्वाब देखता है कि एक शख्स 7000 दरहम देकर कहता है कि ले ऐ बेसब्र अगर तू क़यामत तक इंतज़ार करता तो ये तेरे हक़ में कहीं ज़्यादा बेहतर होता_*

*जो आशूरह के दिन 4 रकात नमाज़ 2-2 करके इस तरह पढ़े कि चारों में सूरह फातिहा के बाद सूरह इखलास 11-11 बार तो उसके 50 साल के गुनाह अल्लाह माफ फरमा देगा और उसके लिए नूर का मिम्बर बिछाया जायेगा*

*📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 181*

*दुआये आशूरह ऊपर भेजी है उसे पढ़ने का तरीक़ा भी उसमें लिखा है,जो ये दुआ पढ़ लेगा इन शा अल्लाह तआला अगले आशूरह तक ज़िंदा रहेगा और अगर क़ज़ा आनी ही है तो ये दुआ हरगिज़ ना पढ़ पायेगा*

*📕 मजमुआ आमाले रज़ा,जिल्द 2,सफह 112*

*आशूरह के दिन काले कपड़े पहनना मातम करना सीना पीटना घर में झाड़ू ना देना खाना ना पकाना यह सब काम  नाजायज़ो हराम है*

*📕 मिश्कात,सफह 150*

*जारी रहेगा....*
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🕌SUNNI🕋GROUP🕌

*हिस्सा-10*

                      *मुहर्रमुल हराम*

                       *शहीदे आज़म*
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*अल्लाहुम्मा सल्ले वसल्लिम वबारिक अलैहि व अलैहिम व अलल मौलस सय्यदिल इमामे हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*

*नाम ----- सय्यदना इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*

*लक़ब ---- सिब्ते रसूल,रैहानतुर रसूल,सय्यदुश शुहदा*

*वालिद --- मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*

*वालिदा -- खातूने जन्नत हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा*

*विलादत - 5 शाबान,4 हिजरी*

*बीवियां  - 4,शहर बानो-रुबाब बिन्त इमरा अलक़ैस-लाईला बिन्त अबी मुर्राह अल थक़ाफी,उम्मे इस्हाक़ बिन्त तल्हा बिन उबैदुल्लाह*

*औलाद  -- 6,हज़रत ज़ैनुल आबेदीन व हज़रते सकीना शहर बानो से,हज़रत अली अकबर व फातिमा सुग़रा लाईला से,हज़रत अली असगर व सुकैना रुबाब से*

*विसाल --- 10 मुहर्रम,61 हिजरी,जुमा*

*उम्र    --  56 साल 5 महीने 5 दिन*

*आपके फज़ाइल में बेशुमार हदीसें वारिद हैं हुसूले बरकत के लिए चंद यहां ज़िक्र करता हूं*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूं और फरमाते हैं कि जिसने हुसैन से मोहब्बत की उसने अल्लाह से मोहब्बत की*

*📕 मिशकातत,सफह 571*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो चाहता है कि जन्नती जवानों के सरदार को देखे तो वो हुसैन को देख ले*

*📕 नूरुल अबसार,सफह 114*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने एक मर्तबा इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को देखकर फरमाया कि आज यह आसमान वालों के नज़दीक तमाम ज़मीन वालों से अफज़ल है*

*📕 अश्शर्फुल मोअब्बद,सफह 65*

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु पर अपने बेटे हज़रत इब्राहीम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को क़ुर्बान कर दिया*

*📕 शवाहिदुन नुबुवत,सफह 305*

*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि हसन के लिए मेरी हैबत व सियादत है और हुसैन के लिए मेरी ज़ुर्रत व सखावत है_*

*📕 अश्शर्फुल मोअब्बद,सफह 72*

*इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बहुत बड़ी फज़ीलत के मालिक हैं आप कसरत से नमाज़-रोज़ा-हज-सदक़ा व दीग़र उमूरे खैर अदा फरमाते थे,आपने पैदल चलकर 25 हज किये*

*📕 बरकाते आले रसूल,सफह 145*

*करामात*

*_अबु औन फरमाते हैं कि एक मर्तबा हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का गुज़र कस्बा इब्ने मुतीअ के पास से हुआ,वहां एक कुंआ था जिसमे पानी बहुत कम रह गया था यहां तक कि डोल भी भरकर ऊपर ना आ पाता था जब लोगों ने आपको देखा तो पानी की किल्लत की शिकायत की तो आपने फरमाया कि एक डोल पानी लाओ जब पानी आ गया तो आपने उसमें थे थोड़ा सा मुंह में लिया और डोल में कुल्ली कर दी और फरमाया कि इसे कुंअे में डाल दो,जैसे ही कुंअे में वो पानी डाला गया कुंआ पानी से लबरेज़ हो गया और पहले से ज़्यादा ज़ायकेदार भी हो गया_*

*📕 इब्ने सअद,जिल्द 5,सफह 144*

*ये वही हुसैन बिन अली हैं जिन पर कर्बला में 3 दिन तक पानी बंद कर दिया गया मगर ये रब की रज़ा थी जिस पर आप राज़ी थे वरना कसम खुदा की आप ज़मीन पर एक ठोकर मार देते तो फुरात आपके खेमे से होकर बहती*

*_मैदाने कर्बला में एक जहन्नमी मालिक बिन उरवा ने आपके खेमो में आग जलती हुई देखी तो बेबाकी से कहा कि ऐ हुसैन तुमने तो जहन्नम से पहले ही आग जला ली इतना सुनना था कि आप जलाल में फरमाते हैं कि ज़ालिम क्या तेरा ये गुमान है कि हुसैन जहन्नम में जायेगा आपने दुआ की कि ऐ मौला इसे जहन्नम से पहले ही दुनिया की आग का मज़ा चखा,अभी ज़बान से ये निकला ही था कि उसका घोड़ा बिदका वो गिरा उसका पैर लगाम में उलझा और घोड़ा उसे घसीटते हुए एक आग की खन्दक में फेंक आया_*

*📕 रौज़तुश शुहदा,सफह 230*

*कर्बला की ये करामत भी ज़ाहिर करती है कि आप मजबूर ना थे बल्कि मुखतार थे मगर बस वही कि खुदा की रज़ा में राज़ी थे*

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              *जोइन*

SHAH NIYAZ BE NIYAZ KE NAAM SE TAZIYADARI KE MUTA'ALLIK WAQIYA GLAT OR MANGADAT HE...

*🌹SAWAL:-🌹*

Hazrat Shah Niyaz Be Niyaz Barellvy. Rahmatullah Alaihe.Aap Paabandi Se Taziya Ki Ziyarat Karte They. Ek Baar Kisi Molvi Sahab Ne Huzoor Niyaz Be Niyaz Se Is Mamul Par Kuchh Etraaz Kiya- Aap Ko Jalaal Aagaya Chunanche Aapne Uski Gardan Pakad Kar Ek Taziye Ki Taraf Ishaara Karte Hue Khas Jazbe Ke Saath Farmaya: Molvi Dekh Kya Nazar Aata Hai? Molvi Dekhte Hi Behosh Ho Kar Ghir Pada Der Tak Usi Halat Mein Raha. Hosh Aane Par Riqqat Taari Ho Gayi Jab Halat Durust Hui Toh Logo'n Ke Daryaft Karne Par Bataya Ke Mujhe Hasnain Kareemain Ki Ziyarat Hui Jis Se Mujh Par BeHoshi Taari Ho Gayi Mai Bayaan Nahin Kar Sakta Ke Maine Kya Nazaara Dekha Hai. (Riyaz Ul Fazail Safa No.229.230)

*KYA YE SAHI HE 👆🏻👆🏻👆🏻??*

*🌹JAWAB:-🌹*
Ye Waaqia Man Ghadat Maloom hota hai aur Rahi Baat Shah Niyaz be Niyaaz saheb ki to un ka qaul Jab k Ye Hamare Mazhab ke Mukhalif hai to Mo'tabar nahi aur na hi Qaabil e daleel hai.
OR jo hawala diya he vo bhi kisi sunni sahih ul aqida ka maloom nahi hota.


*_📬AL-JAWAB:-MUFTI MAQSOOD AKHTAR QADRI(MUMBAI)_*


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TAZIYADARI NAJAIZ HE.. EK POsT KA JAWAB

'''''''''''क्या हैं ताज़ियेदारी'''''''''''
*👆🏻✅Taziyadari Khurafato Bid'at Hai.✅*

❌ये पोस्ट उन लोगो के लिए है!  जो ताज़िये को लेकर थोड़ा शक मै है! और इस पोसर पोस्ट को हर ग्रुप में शेयर  करे ताकि  लोगो का शक दूर हो !!!!!
*✅👆🏻Is Post Ko Isliye Banayi Gayi Hai Ki Logo Ko Gumrah Kar Sake.*

❌शरीयत के 2 रास्ते हे (1) इल्मे शरीयत वाला  (2)  इश्क़ वाला

*✅👆🏻Ilme Shari'at Ko Chhod Kar Ishq Wala Banna Ye Himaqat Hai.*

❌इल्म वाले लोग मुल्ला मौलवी होते है,
*✅Mustafa Jane Rahmat Sallallahu Alaihi Wa Sallam Ne Irshad Farmaya Ki Aulama Ambiya e Kiram Ke Waris Hai Aur Beshak Ambiya e Kiram Dirham O Dinaar Ke Malik Nahi Banate*
*Balki Wo To Ilm Ke Waris Banate Hai Aur Ek Qabile Ki Mout Ek Aalim Ki Mout Ke Muqable Me Nihayat Mamooli Hai.*
(Sho'abul Imaan Bab Fi Talabul Ilm Jild 2 Page 263 Hadees No 1699)

*✅Koi Shakhs Aalim Ki Touhin Is Bina Par Kare Ki Uske Pas Ilm Hai To Ye Kufr Hai*
❌और इश्क़ वाले लोग औलिया  अल्लाह,पीर  फ़क़ीर ,मलंग  होते है!!
*✅👆🏻 Koi Bhi Wali Aesa Nahi Jo Aalim Na Ho Agar Koi Aalim Ko Ilme Shari'at Wala Kah Kar Bhonkega To Wo Wali Allah Ki Bhi Touhin Hojayegi Likhne Se Pehle Thoda Soch Liya Karo Jahilo'n*
        ❌  ये हे इल्मे शरीयत वाले लोग...........

बहुत सारे उल्मा,मौलवी,मुफ़्ती ने ताज़िये के खिलाफ  फतवा दे रखा  है! देवबंद,वहाबी,अहले हदीस,और यहाँ तक के अहमद राजा बरेलवी (आला हज़रात) ने भी इसे गलत बताया है!!
*✅Aala HaZrat Fazile Barelvi Rahimahullah Ne Murawwaja Taziyadari Ko Na Jaizo Haram Likha Hai Jisme Bid'at o Khurafat Hoti Hai Aurte Be Parda Ghumti Hai Taziye Pe Chadawa Chadhati Hai Mannate Manti Hai Jo Na Jaiz Wa Gunaah Ke Kaam Hai.*

❌मौलवी लोग कहते है!  के एक राजा  था जिसका नाम तैमूर  था उसने ताज़िये की शुरुवात की थी!!और कुछ लोग ये भी कहते है के ये शियाओ का तरीका  है ये सब गलत हे मनगड़त बातें है क्योंकी जब ताज़ियेदारी हिंदुस्तान में शुरू हुई थी उस वक़्त शिया मज़हब का हिन्द मे वजूद ही नहीं था  !!  हक़ीक़त  कुछ और ही है!!!

ताज़िये की शुरुवात बग़दाद  से हुई है !  और हिंदुस्तान में इसकी  शुरुवात  12 सदी  से हुई है! हिन्द मे सबसे पहले ताज़िये  शरीफ बनाने वाले   शहंशा ए हिन्द नूरे  नबी औलाद  ए अली  हजरत ख्वाजा गरीब नवाज़ ने बनाया था !  और आज तक ये सिलसिला  जारी है!!........
*✅👆🏻Hindustan Me Sarkar Garib Nawaz Rahimahullah Ne Taziya Banaya Uski Daleel?*
*Garib Nawaz Ki Kitab Ya Unke Khalifa Ki Kitab Se Daleel Do?*
❌इस्माइल  देल्हवी,अशरफ  अली थानवी,अहमद रज़ा खां  (आला हज़रत) और भी बहुत सारे मौलवी है  जिन्होंने  ताज़िये  को नाजायज़  बताया है! और आज के करीब  40%  मौलवी इसे गलत बताते है!!!  ये हे इल्मे शरियत  वाले लोग....
*✅Aala HaZrat Fazile Barelvi Rahimahullah Ne Jo Kuchh Likha Hai Shari'at Ki Baat Likhi Hai Apne Ghar Ki Nahi.*
*👆🏻Shariat Me Taziyadari Na Jaiz Hai To Na Jaiz Hi Kahenge Na?*
*Aap Apni Marzi Se Kuchh Bhi Likhdo Agar Aap Apne Dawe Me Sachche Ho To Daleel Do*
   ❌  आओ अब आपको में इश्क़ वाले लोग बताता हू !!
ये वो हस्ती है !  जिन्होंने ताज़िये को बनाया,ताज़िये मे शरीक  हुए और ताज़िये को कन्धा  दिया !!!

हजरत सैय्यद ख्वाव गरीब नवाज र.अ  (अजमेर)
हजरत सैय्यद ताजुद्दीन  सरकार र.अ (नागपुर )
हज़रत सय्यद वारिस पाक  र.अ (बाराबंकी लखनऊ )
हज़रत सैलानी  सरकार र.अ (बुलडाणा)
हजरत सैय्यद अब्दुल्लाह  हुसैनी  र.अ (तामिलनाडु )
हजरत शाह नियाज़  बेनियाज़  र.अ ( बरेली )
हजरत बाबा फरीद  गंज -ए-शकर  र.अ (पाकिस्तान)
हजरत सैय्यद खवाजा बन्दा नवाज गेसूदराज र.अ (कर्नाटक)
हजरत सैय्यद वसी मौहम्मद सरकार. (दौलताबाद )
*✅Daleel Wo Laye Jo Apne Dawe Me Sachcha Ho (Quraane Karim)*
*👆🏻 In Sare Buzurgo Ne Taziya Banaya Aur Use Lekar Baazaro Me Ghumaya Ye Sari Daleel Original Kitab Ke Scan Se Dijiye.*
*Aur Ye Bhi Bataiye Ki Ye Sare Buzurgane Deen NeAurto Ka Mela Lagakar Taziye Nikale Dhuwa Dhukkur Silga Kar Aur Logo Se Taziye Ke Paise Le Kar Banaye?*
और भी बहुत सारे औलिया अल्लाह हे जो ताज़िये ये में शरीख  होते थे!
*✅👆🏻Aur Bhi Jo Wali Allah Ke Jo Taziye Me Khurafato Bid'at Karte Ho Unka Naam Bhi Bataiye.(Maa'zallah)*
❌अब फैसला  आप लोगो को करना है,800 से साल वाले  गरीब नवाज की मानोगे. या फिर आज के मौलवी का !
*✅👆🏻SarkarGarib Nawaz Rahimahullah Bhi Molvi (Aalim) Bhi Hai*
❌  इल्म वालो की सुनोगे  या इश्क़ वालो की ?
*✅👆🏻Ishq Walo Ki Sunane Walo Isq Walo Ne Unki Sari Zindagi Rahe Khuda Me Waqf Kar Di Aur Aap  5 Waqt Ki Namaz Nahi Padh Sakte.*
*Dawa Be Asl Hai Jhuti Hai Muhabbat Teri.*
❌अगर आप किसी मौलवी को इन सब बुज़ुर्गो  से या फिर गरीब नवाज से भी बड़ा मानते हो तो ठीक है !!  फिर आप मौलवी की सुनो
*✅👆🏻Ham Aalime Deen Ki Jarur Sunege Kyu Ki Aaqa E Karim Sallallahu Alaihi Wa Sallam Ke Ilm Ke Sachche Waris Aulama Hai.*
❌मुझे तो ताज़िये में मौला हुसैन और कर्बला की यादे दिखाई देती है!   और. में तो इश्क़ वाला हु इसलिए ताज़ियेदारी  मरते दम तक जारी रहेगी !!
*✅Aap Marte Dam Tak Bid'at o Khurafat Karte Raho Aur Auliya Allah Ko Badnam Karte Raho*
❌एक बात हमेशा ध्यान रखना के यज़ीद पलीद  भी मुसलमान था !!
और 72 शहीद में एक गैर मुस्लिम भी है हज़रत जौंन(र जी.) गुलामे अबु जर ये ईसाई  थे किसी ने कहा के इस्लाम कबूल  कर लो तो उन्होंने कहा ये जो सामने है ये भी मुस्लमान है!!!

मुस्लमान होना  ज़रूरी  नहीं है साहब आशिक़  ए हुसैन होना जरूरी है!!!!!
   *✅Koi Musalman Na Ho Aur Aashiqe Husain Radiyallahu Anhu Ho To Kya Aapke Nazdik Imaan Wala Hai??*
*Jawab Do Agar Sachche Ho To?*      

❌''''''''''''''''''''''''ताज़िया  हलाल  है!  हलालियो  के लिए'''''''''''''''
*✅👆🏻Dhol Tashe Gaja Baja Bajana Jo Ki Islam Me Na Jaizo Haram Hai.*
*Aur Aap Halal Keh Rahe Ho To Daleel Do?*

❌'''''''''''''''''''''''ताज़िया हराम  है !  हरामियों के लिए''''''''''''''''''''

*✅Murawwaja Taziyadari Haraam Hai. Haraam Hai. Haraam Hai.*
*Kisi Shari'at Ke Kaam Me Dakhal Karke Haraami Kehne Walo Jara Aap Apne Ghar Ki Bhi Khabar Kar Lena....*
      *******या अली मौला हुसैन *******
*Mere Husain Aapki Bahaduri Ko Salaam.*
""या अली मदद""
""मौला मदद"""
*Ya Ali Al Madad*
*Ya Imaame Husain Al Madad*

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MUHARRAM ME MACHLI KHANA KAISA ? JAWAB

*🌹SAWAL:-🌹*
Mahe muharram me kuch log machli khana gunah samajte he. Or khane se mana karte be..Kya ye sahi he ?
Machli kha sakte he ya nahi ??

*🌹JAWAB:-🌹*
Muharram Ke Mahine Me Bhi Machhli Kha Sakte He Bana Sakte He, Koi Harj Nahi, Machhli Khana Kisi Bhi Mahine Me Mana'a Nahi He.
Ba'az juhla'a kahte he ke ayyame muharram me machli nahi khana chahiye ye bikul be asl he..
*📚(Fatawa Baraily Shareef, safa-302)*

Or jo log mana karte he unhe chahiye ki daleel pesh kare..

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MUSAFIR IMAM KE PICHE MUKIM MUQTADI KIS TARAH NAMAZ PADHE....

*🌹SAWAL:-🌹*
Musafir imam ke piche mukim muqtadi kis tarah namaz padhe ???

*🌹JAWAB:-🌹*

Musafir imam ne 4 (char) raka'at wali namaz yani zohar , asar, or isha me Mukim  muqtadi ki imamat ki, to musafir imam 2 (do) raka'at par salam fer de or imam ke salam ferne ke baad muktadi apnk baaki namaz puri kare or in dono raka'ato me mutlaq kira'at na kare yani halate kayam me kuch na padhe, balki  itni der ki sura e fatiha padhi jaae mahaz khamosh rahe.

*📚(Durre mukhtar,raddul muhtar, bahare shariyat,hissa-4,safa-82 or Fatawa razviya, jild-3, safa-395)*
*📖(momin ki namaz, safa-403/404)*

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AGAR IMAM KE PICHE NAMAZ ME PAHELI TEEN RAKA'AT CBUTH JAAE TO MUQTADI KIS TARAH NAMAZ PADHE....MAS'ALA

*🌹SAWAL:-🌹*

Agar jama'at se namaz padh rahe h or shuru ki teen rak'at nikal gyi h humne akhri rak'at se jamat ko pakda h. us surat mein imam k salam ferne k baad kya hume jama'at ke mutabik khamosh rehna h ya fir bachi hui rakato'n me surah fateha padhni padhegi..

*🌹JAWAB:-🌹*
Kisi masbook mauktadi ko 4 (char) rak'aat wali namaz yani zohar,asar, ya isha ki sirf ek hi raka'at mili yani voh masbook muktadi chauthi raka'at me jama'at me shamil huaa, lihaza voh imam ke salam ferne ke baad 3 (teen) raka'ate hasbe-zail tartib se padhega.

Imam ke salam ferne ke baad khada ho jaae or agar kisi wajah se sana nahi padhi thi, to ab padhle , or agar pahle sana padh chuka to sirf a'audhu se shuru kare or pahli raka'at me sura E fatiha or surat padh kar, ruku'a or sajda karke kai'da me bethe or ka'ada  me sirf 'attahiyat' padh kar khada ho jaae, fir dusri raka'at me alhamdu shareef or surat dono padhe or ruku'a w sujud  karke ka'ada kiye bagair tisri taka'at ke liye khada ho jaae or tisri raka'at ke kayam me sirf sura e fatiha padh kar ruku'a  or sajde karke ka'ada e aakhira karke namaz puri kare.

*📚(Durre mukhtar,bahare shariyat hissa-3, safa-136 or Fatawa razviya jild-3safa-393/296)*
*📖(Momin ki namaz safa-350/351)*

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Taweez Pahnna Quraan W Hadish ki roshni me


بسم الله الرحمن الرحيم

SAWAL:
Hazrat Tabeez pehanna kaisa hai?
Meharbaani karke Quran aur Hadees ki roshani mein jawab dijiye.
JAWAB
Ham log taweez o wazaaif men qurani aayat o durood shareef ahadees men waarid mamoolaat o uazaaif buzurgo se manqool a'amal padh kar dam karte hain ya inhin cheezo ko likh kar dete hain Aur wahabi gair muqallid wagairah inhin wazaaif o taweezaat ko jo quran hakeem o ahaadeese nabwiyya men warid hain ya buzurgon se manqool hain un wazaaif wagairah se banaaye huye taweezaat ko shirk kahte hain aur  bukhari shareef ki hadees shareef pesh karte hain  jis men  yahoodi se dam karane ka zikr hai
Sarkar aqdas صلی اللہ تعالی عليه وسلم kuffar o mushrikin yahoodi nasrani wagairah ke oh mantar jis men mazmeen kufiriyya hote us se mana farmaya yani un mantaro ke mazmeen men kabhi ye hota keh woh log apne maboodaan baatil se istimdad karte the yani madad mangte the maslan Aye laat meri pareeshani door kar de Aye uzza meri mushkil hall kar de (laat o uzza arab ke kafiro ke but the) ya koi hindustaani kafir is tarah kahe keh Aye raam meri madad karo aye seeta  mera kaam bana de. Zahir hai keh is tarah ki iabaraten kufriyya hain is liye keh  kuffar o mushrikin in buton ko apna khuda maan kar phir us se madad maangte hain aur be shak ye kufr hai
sarkar aqdas صلی اللہ تعالی عليه وسلم ne kuffar o musrikeen aur unke maboodaane baatil buto  ki mazammat o buraai men jo kuchh farmaya unhen ye wahabiyya hamare khilaaf bataur daleel pesh kar ke ham par kufr o shirk ka hukm lagate hain
Agar taweez o wazaaif men qurani aayaat hon ya ahadees men manqool dua wagairah hon unhen padh kar dam karna ya unhen likh kar bataure taweez dena quran o hadees se saabit hai.
ALLAH Rabbul Aalameen Qurane Kareem Me Farmata Hai,
"Aur Ham Quran Utaarte Hai Wo Chiz Jo Imaanwalo Ke Liye Shifa Aur Rahmat Hai Aur Is Zaalimo Ko Nuqsan Hi Badhta Hai."
(Surah Bani Israel, Para 15, Ruku 9, Aayat 82, Tarzuma Kanzul Imaan)

ALLAH  تعالى  ne quran shareef naazil farmaya aur is men momineen ke liye shifa hai aur jo momin nahin un ke liye shifa nahin.
Is aayat se saaf zahir ho gaya keh kon momoin hai aur kon momin nahin
Jo momin hai oh qurani aayaat se shifa maanta hai. Aur jo momin nahin oh shifa se inkar karta hai.
Ab yahan se aap hazraat samjhen keh kon si jamat Raahe haq par gamzan hai aur kon si baatil par

IS SILSILE MEN KUCHH AHADEES BHI MULAHAZA KAREN
HADEES*
Hazrat UMME SALMA (Radhiyallahu ta’ala anhA) Se Riwayat hai ki Rasool Allah (sallallahu ta’ala alaihi
wasallam) ne unke ghar me ek londi ko dekha jiska chehra zard tha. HUZOOR ne farmaya isey taveez karao isey NAZRE bad lagi hai
(MUSLIM, BUKHARI vol-2 page-854
MISHKAT page-388)

HADEES
Hazrat AYESHA (Radhiyallahu ta’ala anhA) se riwayat he ki Rasool Allah (sallallahu ta’ala alaihi wasallam) ne hukm farmaya ke
Nazar bad ke liye Dua Taveez karaye
(MUSLIM,
BUKHARI vol-2 page-854 MISHKAT page-388)

HADEES*
Hazrat AOUF BIN MALIK ASHJAEE
(Radhiyallahu ta’ala anhU)
Ne farmaya ke hum log zamana-e-jahliyat me jhaad fhoonk karte the
ISLAM lane ke baad hum ne arz kia
YA RASOOL ALLAH in mantaron
ke bare me aap kya farmate hai
Rasool Allah (sallallahu ta’ala alaihi wasallam) ne farmaya apne mantar mujhe sunao un mantaron me koi harj nahi jabtak ke unme SHIRK na ho
(MUSLIM,vol-2 page-224 MISHKAT page-388)
HAZRAT SHEIKH ABDUL HAQ
Muhaddis Dahelvi Rehmatullah Aleh Is hadees ke tahet farmate
hai

“yani mantar me jinn va shayateen
Ke Naam na hon aur us mantar
Ke ma’ana se kufr Lazim na aata ho
To Uske padhne me koi harj Nahi Aur isiliye ulma-e-salf Ne Farmaya he jis mantar ka ma’ana Malum na ho usey nahi padh sakte Lekin Jo Huzoor Alaihissalam se sahih tour par Manqool Ho Usey padh sakte hain, Agar chey uska ma’ana Maloom na ho.
(Ash'atul lam'aat vol-3 page-604/anwarul hadees)

RAH GAYI BAAT TAWEEZ GALE MEN LATKANE KI TO YE BHI HADEES SHAREEF SE SAABIT HAI
HADEES
Hadees-E-Nabwi:
Sanad :

Imam Abu Dawood Rehmatullah Alaihi. — > Musa bin Ismail Rehmatullah Alaihi . — > Hammaad Rehmatullah Alaihi .  — > Muhammed Bin Ishaq Rehmatullah Alaihi .— > Amr Bin Shoeib Rehmatullah Alaihi . — > Apne Waalid Rehmatullah Alaihi . — > Abdullah Ibn Amr Radiallahu Anhu. — Rasoolullah Sallallahu Alaihi Wasallam

Matan :
Hazrat Abdullah Ibn Amr Radiallahu Anhu Bayaan Karte Hai Ke Rasoolullah Sallallahu Alaihi Wasallam Ne Farmaaya:

Jab Tum Me Se Koi Neend Me Dar Jaata  Ho, Toh Wo (Yeh) Kalimaat Kahe :
‎أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ التَّامَّاتِ مِنْ غَضَبِهِ وَعِقَابِهِ وَشَرِّ عِبَادِهِ، وَمِنْ هَمَزَاتِ الشَّيَاطِينِ وَأَنْ  يَحْضُرُونِ

“AOOZU BI KALI MAATIL LAHIT TAMMATI MIN GHAZABI HI WA IQABIHI WA SHARRI IBADIHI WA HAMAZA TISH SHAYATEENUW WA AYIN YAHZUROON”.
Hazrat Abdullah Bin Amr Radiallahu Anhu Apne Samajhdaar Bach-cho Ko Yeh Kalimaat Sikhaate The Aur Na-Samajh Bach-cho Ke Gale Me Yeh Kalimaat Likh-kar Latka Dete The.

(Sunane Abu Dawood, Jild 4, Safa 141, Hadees No 3893)

Wahabi log qurani aayaat wagairah ki taweez gale men latkane ko bhi shirk kahte hain to wahabiyon ke mazhab ke hisaab se woh sahabi mushrik huye keh nahi?
Ab yahan se samajh lijiye keh jis mazhab ke nazdeek sahabi tak mushrik ho jaayen woh aap ko kahan aur kis raaste par le jaana chaahte hai.
Jis mazhab men sahabae kiraam tak mushrik ho jaayen yaqeenan woh jahannam ka hi rasta hoga.

ALLAH ﻋﺰﻭﺟﻞ Aap Par Fazl farmaye !
~●~●~●~●~
جزاك الله خيرا... For Reading
~●~●~●~●~
ﺻَﻠُّﻮْﺍ ﻋَﻠَﯽ ﺍﻟْﺤَﺒِﯿْﺐ
ﺻَﻠَّﯽ ﺍﻟﻠّٰﮧُﺗَﻌَﺎﻟٰﯽ ﻋَﻠٰﯽ ﻣُﺤَﻤَّﺪ
(صلی اللہ علیہ وسلم)

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MUHARRAM ME NIYAZ OR USKA CHANDA KARNA KAISA

*🌹SAWAL:-🌹*
 Imam-e-Husain or Shohda Karbala Ki Niyaz or Fateha ke Barey Mein Kya Kehna Hai ?

*🌹JAWAB:🌹*
Aala Hazrat Farmate Hain Niyaz or Fateha Jayez Hai Roti, Shirni, Sharbat Jis Chiz Par Ho. Lekin Taaziye Par Rakh Kar Ya Uskey Samney Hona Jahalat Hai. Or Usper Chadhane Ke Sabab Tabarruk Samajhna Himaqat Hai. Magar Taaziye Se Juda Khalis Sachhi Niyat Ho. Hazrat-e-Shohda Karbala Ki Niyaz Ho Wo Zaroor Tabarruk Hai. Wahabi Khabees Hai kyun Wo Is Niyaz Ko (mazallah) Khabees Kehta Hai.
 *📚(Fatawa Razwiyah, Vol. 24, Page. 524)*

*🌹SAWAL:-🌹*
Musalmano ka mahe muharram me pani, sharbat ki sabeel lagana kaisa bai ??

*🌹JAWAB:-🌹*

Aala hazrat farmate he mah e muharram me jisne pani or sharbat ki sabeel lagaya(allah ki raza ke liye) bila shuba behtar or mustahib or kare sawab he.
*📚(Fatawa razviya,vol 24, page. 520)*

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*🌹SAWAL:-🌹*

Specially muharram ke julus ke liye maila lagaya  gaya ho usme rakhe gaye paani w sharbat me chanda kar sakte he ???

*🌹JAWAB:-🌹*

Paani ya sharbat har musalman ko pila sakte he or maila me sabeel na lagai jaae, na is wajah se ki sabeel ki mukhalefat he, balki maila me shirkat ki..
*📚(Fatawa razviya jild 24, safa-108)*
Or is me chanda bhi nahi karna chahiye.

Wallahu ta'ala a'alam

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Ulti hone se wuzu tutne ka mas'ala

*🌹SAWAL:-🌹*
Wazu ulti hone se tut jata he???

*🌹JAWAB🌹*

➡Khun,pani,khana,ya peet ki munh bhar ke qai(ulti) ho to usse wuzu toot jata he.

➡Munh bhar ke qai ka matlab yah he ki uska aasani se rukna mushkil he.

➡Balagam ki qai(ulti) zyada bhi ho to Usse wuzu nahi tutega.

*_📚(BAHARE SHARIYAT JILD-2 TAHARAT KA BAYAN, WUZU TODNE WALI CHIZO KA BAYAN)_*

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Jaha sunni imam na ho vaha jum'aa ki namaz ka masla

*🌹SAWAL:-🌹*
Zaid Saudi ya Dubai me rahta he or us ke aetrafe rasai tak koi Sunni Masjid nahi,or Jo he to vo 92 kilometer se door he, yaani vo musafir ho jata he, to aysi soorat me zaid kya kare??
Teen jum'aa chchut Jane ka khauf bhi he, lihaza mas'ale ki wajahat farmaae

*🌹JAWAB:-🌹*

Jab 92 kilo meter tak Sunni imam na paya jaae to sirf zuhar ki namaz padhe.

Or jab jum'aa farz hi nahi to chchut jaane ka sawal Hi nahi paida hota.

Or agar 92 kilometer ke baad yaani jab vo musafir ho jata he tab use Sunni imam mile to jum'aa agar na bhi farz ho magar aadmi ne koshis karke padhi to ye bahetar he.

Al jawab:-MUFTI MANZOOR AHEMAD YAAR ALWI
Khadim darul uloom barkatiya(MUMBAI)

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GAAY KA GOSHT NUKSAN DEH HE ??????? GAAY KA GOSHT KHANA KAISA ?

*_🌹SAWAL:-🌹_*
GAAY KA GOSHT KHANA KAISA ??

*_🌹JAWAB:-🌹_*
*Gaay ka gosht khana bilkul jaizo halal he or quraan w hadish se waze'a he ki allah ki halal shuda chizo ko apne liye haram kar lena zulm he.allah jalle shanahu ne halal farma diya he hamare liye chahe vo bhains ho, unt ho , ya gaay ho. Ye sab hamare liye halal he or hadishe Rasool me maujud he..*


Hazrate aaisha radiallahu anha farmati he ki huzur sallallahu alaihi w sallam ki bargah me kuch *gaay* ka gosht aaya or aap ko bataya gaya k ye gosht hazrate burairah par sadqa kiya gaya tha to aap ne farmaya ye un ke liye sadqa tha or mere liye hadiya he.
*#(Muslim Shareef-kitabul zakat-,jild awwal)*

🔍Is hadish par tabsara farmate hue aala hazrat imam Ahmad raza rahematullah alaihi farmate he
Is se bazahir tanaul farmana zahir hota he
*#(Fatawa razviya jild 20)*

Musaddad, sufyan,abdur rahman bin qasim,qasim, aaisha radiallahu anha kahte he ki rasoollallah sallallahu alaihi w sallam mere paas tashrif laye, unhe(hazrat e aaisha radiallahu anha) maqame saraf hi me makka pahuchne se pahele haiz aane laga vo ro rahi thi aal sallallahu alaihi w sallam ne pucha kyo roti ho ? Kya tumhe haiz aane laga, unhone jawab diya haa, aap sallallahu alaihi W sallam ne farmaya ye vo chiz he jo allah ta'ala ne aadam ki betiyo ki qismat me likh di he, is liye haaji jo kuch karte he tum bhi karo, magar ye ke tum khana e kaaba ka tawaf na karna hazrat aaisha radiallahu anha ka bayan he ke jab ham log munee me the, to mere paas *Gaay* ka gosht laya gaya, mene pucha ye kiya he, logo ne bataya k aap sallallahu alaihi w sallam ne apni biwiyo ki taraf se *Gaay* ki qurbani ki he.
*_#(Sahihul bukhari- jild som, qurbani ka bayan, hadish 527)_*

💡Or is hadish pe tabsara farmate hue aala hazrat imam Ahmad raza radiallahu anha farmate he ke huzur sallallahu alaihi w sallam ne apni azwaje mutahrrat ki taraf se gaay ki qurbani ki or qurbani ka gosht khane ka hukm farmate, magar khud huzur sallallahu alaihi w sallam ne Tanaul nahi farmaya is bare me koi tasrih hadish maujud nahi he
*#(Fatawa razviya jild 20)*

*_Ab jo log gaay ke gosht khane ki mazammat me abu dawood Shareef ki jo hadish naql ki jaati he vo hadish Ye he_*
*عن مليكة بنت عمرو الجعفية أن النبي صلى الله عليه وسلم قال : (ألبانها شفاء – يعني البقر - ، وسمنها دواء ، ولحمها داء)*
رواه علي بن الجعد في " مسنده " (ص/393)،  وأبو داود في " المراسيل " (ص/316)،

*_Hadish ka pas manzar🎁_*

وهذا إسناد ضعيف ،
*ومليكة بنت عمرو الزيدية السعدية* مختلف في صحبتها ،
Ye hadish zaif he Or uski rawi malika binte amru ke sahabiya hone me ikhtelaf he(yani wo sahabiya.. he ya taabeiya..)

Or aala Hazrat imam Ahmad raza radiallahu anha is hadish ke ta'alluk se farmate he jab ek saail ne aap se sawal kiya ke huzur sallallahu alaihi w sallam ne gaay ka gosht khaya ya nahi ??

To aapne jawab irshad farmaya
Huzur sallallahu alaihi w sallam ne gaay ki qurbani farmai or us ke khane v khilane ka hukm farmaya, magar aap ne khaya ya nahi is ka koi sabut nahi duniya ki hazaro ne'amate he jo huzur ne qasdan tanaul na farmaya is ke baad aala hazrat farmate he ke *gaay ke gosht ki mazammat ke bare me jo hadish pesh ki jati he vo sahih nahi he*

Ab waze'a ho gaya ke vo hadish sahih nahi he muhaddisin farmate he ke is hadish ke rawi malika binte amru ke bare me shak huva ke vo sahabiya he ya taabei ?? Is liye muhaddisin ne is hadish ko zaif karar diya.

Or aala hazrat farmate he ki gaay ke gosht ki mazammat ke bare me ye hadish pesh karna sahih nahi he.


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Yaume ghadeer sunni ke nazdik manana kaisa.

*🌹SAWAL:-🌹*

Yaume ghadeer ham sunni mana sakte he ya nahi ???

*🌹JAWAB:-🌹*

Yaume ghadeer shiya logo ka ijaad karda he..

Is deen shiya log bahut si khuRafate karte he...jo islam me sakht najaizo haram he... in sabhi khurafato se hame bachna chahiye..

Is me agar koi aesa kaam jo shariyat ke khilaf ho vo agar ham sunniyo ko karna pade to ye bilkul najaiz o haram he...

Is deen agar ham shiya logo ki musabeh kare to ye jaiz nahi..

al-batta ham fatiha khwani karna ya Takrir wgairah ka ijlas karna.
Is tarah ke kaam kar sakte he...jis me koi khurafat ya shiya logo ki musabeh na ho,..

*Al-jawab🌹:- Mufti Maqsood akhtar qadri Mumbai💐*

المشتہر-
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Bad mazhab niyaz me paisa de to uska khana kaisa ? Agar maloom na ho to kya kare ??

*🌹SAWAL:-🌹*
 Ek dargah he jiske Sandal ke mauke par shiya bhi shamil hote he.. niyaz me unka bhi hissa hota he... waha niyaz kha sakte he...????
Or agar
Niyaz me unka hissa he ya nahi ye maloom nahi.. kehte he ki waha bahar ek peti he usme sab paise dalte rehte he..usi paiso se banta he...
To vaha khana kaisa ????

*🌹JAWAB:-🌹*

Shiya log allah tabark w ta'ala, huzur sallallahu alaihi w sallam w sahab e kiram ki shan me gustakhiYa karne wale kafir he...

Agar dargah ki niyaz me shiya ya kisi bhi badmazhab ka paisa he to use khana najaizo haram he.

Or agar dargah me peti rakhi hui he usme sabhi log paise dal sakte he. Maslan shiya, wahabi,jugari,sharabi, hindu, musalman vagairah...
Or hame maloom nahi ki usme kis kis ka paisa he to us se door rahna chahiye...

Jaisa ki "huzur sallallahu alaihi w sallam ne farmaya ki jo mustabah chizo se bacha vo apne deen or izzat ko bacha liya.Or jo shakhs mustabah chizo me pada vo haram me waqe'a huaa."(bukhari w muslim)

Mustabah yaani jis chiz ka haram w halal hona quraan w hadiah se sabit na ho... ya uske haram w halal hone me shak ho...

Is liye aesi jagah par nahi khana bahetar he...agar puri tahEkik na ho to Usse parhez karna bahetar he..

  • Is liye pahele taheqik kar lena bahetar he


Wallahu ta'ala aa'alam

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Eid e ghadeer ahele sunnat w jama'at ke nazdik..ghadeer ki shuruaat kaha se or kab hui ?? Shiya ka.fitna


✳Sawal

➡As Salaamu Alaikum Wa Rehmatullahi Wa Barkatahu
🌟Hazrath Rehnumayi Farmaye Aur Apne Ilm Se hame bhi Malala Farmaye...

♻Ghadeer ka matlab Kya hai..Ulma e Ahle Sunnat ka Is per Kya Aqida hai..Baraye Meharbani Tafseel se batayen..

JazakAllahu khaira..

✴Jawaab:

➡Tareekh ul Khulafa me Ye Riwaayat hai k Ek din Hazrat Ali Karramallahu Ta'ala Waj'hah ul kareem ne ek khule hue Maidan me bahot se logo ko jama kar ke farmaya k Main tum logo se puchta hu k Rasoolullah صلى الله عليه وسلم ne Yaum e Gadeer e Khum me mere Muta'lliq kya irshad farmaya tha?

♻To us Majma se 30 Admi khade hue aur un logo ne gawahi di k Huzoor صلى الله عليه وسلم ne us roz farmaya tha "Main jis ka Maula hu Ali bhi us ke Maula Hain, Ya Ilaahal Alameen! Jo shaks Ali se Muhabbat rakhe tu bhi us se Muhabbat rakh aur jo shaks Ali se Adaawat rakhe tu bhi us se Adaawat rakh.

🌟Isi Ko Shia Eid e Gadeer Kehte hain aur Khurafaat karte hain k Is Din Jo Bhi Gunaah Kare Sab Muaaf hai.

♻Shia Yahudi se bhi bahot aage nikal gaya hai , Shia ko is Eid ka bahot be chaini se intezar rehta hai,  Shia ne kabhi Baqra eid ke liye itni be chaini intezar nahi kiya jitni shiddat se intezar shia ko eid e gadeer ka hota hai.

♻Balke ek riwayat me hai k Isi Din Hazrat Usman e Gani ki Shahadat hui jis ki khushi me Ye Log Gunaaho ko Bhi Halal Kar lete hain ...
Astagfirullah!

📝 مقصــــود اختــر القـــادری
خادم الافتـــــاء رضوی امجدی دارالافتاء
۵۰/ نیو قاضی اسٹـــریٹ ممبئی ۴۰۰۰۰۳

📝 (Mufti) Maqsood Akhtar Qadri
Khadim Dar al-Ifta Ridawi Amjadi
50/ New Qazi Street Mumbai 400003. 
~,.,..,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,~

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EID E GHADEER KA GADHNA

SAWAL:- eid e ghadeer ki shuruaat kis ne or kab ki????

JAWAB:-

Moiduddawla ne 18 dhul-hijjah 351 hijri ko baghdad me eid manaane ka huqm diya aur us eid ka naam "eid kham ghadeer" rakha, khoob dhol bajaaye gaye aur khusiyan manaayi gayin, usi tareekh yani 18 dhul hijah 35 hijri ko hazrat usman ghani radiallahu anha shaheed huwe they,

isliye us din shiaon ke liye "kham ghadeer" ki eid manaane ka din muqarrar kiya gaya,

ahmad bin buwaihi dailmi yani moiduddawla ki is ejaad ko jo 351 hijri me hui, Shiaon ne yahan tak riwaaj diya ki aaj kal ke shia ka yah aqeeda hai ki eid ghadeer ka darja eid ul azha se zyada buland hai
Ma'azallah
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SARE JAHAn Se ACHCNA HINDUSTAN HAMARA YE PADHNA KAISA ??

*🌹SAWAL:-🌹*
"Sare jahan se achcha hindustan hamara" ye sher padhna kaisa???

*🌹JAWAB:-🌹*

Ye sher dr iqbal be desh ki muhabbat ke taur par  kaha he na ke  buzuragi ke taur par is liye sare jahan se achcha kuch watan Murad li jaae to kabahaT nahi..keh sakte he..

```Al-jawab:- Mufti Sharfuddin Razvi
darul ulum qadariya habibya hawda bangal```
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Namaz me surah fatiha ke baad surah milana wajib or hadish se sabit he


*🌹SAWAL:-🌹*

Sura e fatiha ke baad surah milana kaisa??
Or badmazhab kahte he ki surah fatiha ke baad surah na milai to bhi namaz ho jaaegi .kya ye sahi he ???

*🌹JAWAB:-🌹*

*👉🏻FARZ NAMAZ KI PAHELI DO RAKAAT OR SUNNAT W NAFL KI SABHI RAKATO ME ALHAMDU SHAREEF KE BAAD SURAH MILANA WAJIB HE*
```jaisa ki kitabo me maujud he👇🏻```

"Farz namaz ki pahli do rak'aato me or witr, sunnat ya nafl ki kisI bhi rak'at me sura e fatiha ki ek aayat padhna bhul gaya ya surat se pahle 2 martaba alhamdu Shareef padhi, *ya alhamdu shareef ke sath surat milana bhul gaya,* ya alhamdu shareef se pahle surat padhi or alhamdu Shareef ko baad me padha to *sajda e sahw wajib"*

*(Durre mukhtar,aalamgiri,bahare shariyat,hissa 4 safa 40, or Fatawa razviya jild 3 safa 123/134)*

👉🏻Or aap ne ek or sawal kiya ki badmazhab kahte he ki namaz me alhamdu Shareef ke baad surah nahi milana chahiye.

To pahli baat ye ki  4 mazhab he or charo mazahib me namza ka Tarika alag alag he.

Or ham alhamdulillah sunni Hanfi he

Hazrat Ubada Bin Saamt radiallahu anha Nabi e karim sallallahu alaihi w sallam Se Riwayat Karte He k Aap sallallahu alaihi w sallam Ne Farmaya jo Surah Fatiha Or is Se Zaayid (Yani Aik Or Surat) Na Parhe To is ki Namaz Nahi Hoti.
Is Hadith k Rawi Sufyan radiallahu anha farmaate He k Ye Hukam us Shakhs k Liye He jo Akele Namaz Parh Raha Ho…
*Ref:Sunan Abi Daud, j#01, p#119, Darul Isha’at Karachi.*

*_Sahi Muslim, j#01,P#169,Al-Meezan Karachi._*

*Sunan Nisai, j#01,p#145, Darul Isha’at Karachi.*

👉🏻NAMAZ ME SURAH FATIHA KE BAAD~

"namaz me surah fatiha ke baad surat padhna or usse pahle bismillah padhna"
*(Muslim hadish#894)*

"Pahli do rakato me surah fatiha ke sath or surat ya quraan ka kuch hissa bhi padhna"
*(Bukhari hadish#762, muslim hadish#1013, daud hadish#859)*

_"Or aakhir 2 rak'ato me sirf surah fatiha pdhna or kabhi kabhi surat bhi padhna"_
(farz ki aakhri rakato me sirf surah fatiha padhna, or sunnat w nafl ki sabhi rakato me surah fatiha ke baad quraan ki aayate ya surah padhna)
*(Muslim hadish#1013,#1014)*


In hadisho se sabit he ki surah fatiha ke baad surah milana wajib he or agar bhul kar koi surah ya quraan ki aayat milana bhul gaya to sajda e sahw wajib or agar jaanbuj kar surah fatiha ke baad quraan ki aayat na padhi to uski namaz na hui...

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MUSALMAN KE LIYE RAKHI BANDHNA KAISA ??

*_🌹SAWAL:-🌹_*
Ek bhai ne ek hindu ladki ko behan banaya he.. wo har rakhshabandhan par usse rakhi bandhwate he aur use paise dekar usse mithayi lete he... inpar kya sharyi hukm he?  Rehnumayi farmaye...

*_🌹JAWAB:-🌹_*

Jin musalman aurto ne hinduo ko ye dora bandha ya jin musalman mardo me hindu aurto se ye dora bandhwaya *vo sab fasiq o fajeer, gunehgaar, mustahqqe azabe naar hue.lekin kafir na hue* is liye ke ye rakhi bandhan pooja nahi. Un ka kaumi tyauhar he or inka ye qaumi shuaar he.mazhabi shuaar nahi. Kisi bhi kafir ke qaumi shuaar ko ikhtiyar karna haram v gunah he. Jaise holi khailna. Haa kisi kafir ke mazhabi shuaar ko ikhtiyar karna zaroor kufr he.
Mazhabi shuaar ka matlab ye hota he ki vo cheez un ke mazhab me ibadat ho ya vo cheez un ke mazhab ki roo se un ke mazhab ki alamat ho.
Jaise choti rakhna,zunar bandhna. Or rakhi bandhna na to un ke mazhab me ibadat he or nahi un ke mazhab ki roo se un ki mazhabi alamat . Ye ek qaumi rasm he.
Wallahu ta'ala aa'alam

*(FATAWA SHAREH BUKHARI,JILD 2,SAFA 565)*

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Gyarvi barvi manana hadish w buzurgane deen se sabiT

*_🌹SAWAL:-🌹_*
gyarvi barsi karna jayaz hai ya nai
 Kyunki in chizon ko ek khas din muqarrar kiya jaata hai Aur ye ek nayi parampara ek naya riwaj ki tarah ban jaata hai To yeh kya biddat hoti ya nai ????

*_🌹JAWAB:-🌹_*

Gyarvi barvi karna bila shakko subah jaiz he.
Ye isale sawab ki hi ek kism he.. Ye ek mustahab amal he or Ise karne se sawab milta he.
Naya riwaz vo mana he jise shariyat ne mana kiya ho..

*🌹JISNE ACHCHA AMAL IJAD KIYA USE SAWAB MILTA HE👇🏻*

*_📝Hadees :🌹_*
“Hazrat Jareer Bin Abdullah RadiyAllahu Ta’ala Anhu Se Riwayat Hai Ki Huzoor Nabi E Akram صلى الله عليه وسلم Ne Farmaya :
Jis Ne Koi Achchha Tareeqa Jaari Kiya Phir Us Par Amal Kiya Gaya To Us Ke Liye Apana Sawaab Bhi Hai Aur Use Amal Karne Waalon Ke Baraabar Sawaab Bhi Milega.
Jab Ki Un Ke Sawaab Me Koi Kamee (Bhi) Na Hogi Aur Jis Ne Koi Bura Tareeka Jaari Kiya.
Phir Woh Tareeqa Apnaaya Gaya To Us Ke Liye Apana Gunaah Bhi Hai Aur Logon Ke Gunaah Ke Baraabar Bhi Jo Us Par Amal Paira Huwe.
Baghair Us Ke Ki Un Ke Gunahon Me Kuchh Kamee Ho.”
References :
*(Jamai Tirmizi Vol : 05, Pg : 71, Kitabul Ilm, Baab : Hadees : 2675)*
*‏ قَالَ أَبُو عِيسَى هَذَا حَدِيثٌ حَسَنٌ صَحِيحٌ ‏.‏*
```_Imam Abu Isaa Tirmizi Farmate Hai Ye Hadees Hasan Sahi Hai.```
👉🏻IS SE SABIT HUAA KI NEK AMAL KARNE SE SAWAB MILTA HE📚

*_🌹NEK KAAMO KE LIYE DIN MUKARRAR KARNA HADISH SE SABIT👇🏻_*

*_📝Hadees :🌹_*
“Hazrat Kaab bin Malik Radi Allaho Anho Se Marvi Hai k Nabi E Akram صلى الله عليه وسلم Jumeraat k Din Ghazwa E Tabook k liye nikle Aur Nabi E Akram صلى الله عليه وسلم Jumeraat k roz hi Safar Karne ko Pasand Farmate the”
Reference :
*(Sahi Bukhari Vol : 03, pg : 98, Kitabuz Jihad, Hadees : 2950)*
👉🏻IS SE SABIT HOTA HE KI KISI NEK AMAL KE LIYE DEEN MUKARRAR KARNA HADISH SE SABIT HE📚

*🌹GYARVI SHAREEF KARNA BUZURGO SE SABIT HE👇🏻*

Shah Abdul Aziz Muhadis Dahelvi Rahmatullah Alaih (Al Mutwaffa 1239 Hizri) jo Hazrat Shah Waliullah K bete Bhi Hai Aur Wahabiyo k Aaka Aur Maula Shah Ismail Dahelvi k Chacha bhi
Wo khud Apne wakt ki baat Farmate Hai k 11 vi Sharif Sarkari taur pe Manayi jaati thi
“Farmate Hai ki Hazrat Gaus Aazam Radi Allaho Anho k Rauz E Mubarak Par Gyarvi Tareekh Ko Badhshah Wagaira Shaher k Aqabeerin Jama Hote Namaz  E Asr K Baad Magrib Tak Kalamullah k baad Sazzada Nasheen Darmiyan Me Tashrif Farma Hote Aur Unke Ird Gird Mureedin Aur Halka bagosh Baith Kar Jikr Jehar Karte Isi Halaat me baaj Par Wazdani Kaifiyat Taari Hojati Uske Tamam Shirni Jo Niyaz tayyar Ki Hoti Taksim Ki jaati Aur Namaz E Isha padhke Log Rukhsat Hote”
*_(Malfoozat E Azizya pg : 62 Farsi)_*
👉🏻IS SE SABIT HOTA HE KI GYARVI SHAREEF KARNA AAJ KAL KA NAHI BUZURGANE DEEN SE SABIT HE📚

*_📝Or bhi kai hadish w buzurgane deen se sabit hawale maujud he lekin post zyada lambi ho jane ki vajah se yaha likhe nahi ja sakte📚_*

*_🌹SAWAL-O-JAWAB 👑F.T.S.🌹GRP_*

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